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मळी आवतो शब्द ' अचेलक' 'छे जेनो शब्दार्थ ' वस्त्ररहित ' एवो थाय छे. बौद्धो अचेलको अने निर्ग्रन्योने भिन्न भिन्न माने छे. उदाहरण तरीके 'धम्मपद' उपरनी बुद्धघोषकृतटीकामां केटलाक भिक्षुओना संबंधमां जणावेलं छे के, तेओ अचेलको करता निर्ग्रन्थोने वधारे पसंद करता हता. कारण के अचेलको तद्दन नग्न रहे छे ( सव्वसो अपटिच्छन्ना ) परन्तु निर्ग्रन्थो कोई जातनुं ट्रंकुं आवरण राखे छे; जेने ते भिक्षुओ खोटी रीते 'लज्जानी खातर" मानता हता. अचेलकशब्दद्वारा बौद्धो मक्खली गोशाल अने तेनी पूर्वे थई गएला किस संकिञ्च अने नन्द वच्छना अनुयायि
१ बीजो एक शब्द ' जिनकल्पिक ' छे जेनो अर्थ ' जिन जेवो आचार पाळनार' थई शके श्वेताम्बरो कहे छे के जिनकल्पने बदले प्राचीनकालमा ज स्थविरकल्प स्थिर करवामां आव्यो हतो जेनी अंदर बख राखवानी छूट आपवामां आवी हती.
२ जुओ फुसबोलनी आवृत्ति, पृ. ३९८
३ मूळमां आवेला 'सेसकं पुरिमसमप्पिता व परिच्छादेन्ति' ए शब्दो बराबर स्पष्ट थता नथी, परन्तु तेमां जोवामां आवतो विरोध निःशंकरीते एन भावार्थ सूचवे छे. पालीशब्द ' सेसक ' ते मारा धांवा प्रमाणे संस्कृत ' शिक्षक ' नुं रूप छे. आ जो खरुं होय तो उपरना शब्दोनुं भाषांतर नीचे प्रमाणे थई शके ' तेओ ( शरीरना) आगला भाग उपर( कपडे ) पहेरी गुह्यांगने ढांके छे. '
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