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इटालियन विद्वान् डॉ. एल. पी. टेसीटोरी पोताना एक व्याख्यानमां कहे छे के–“ जैनदर्शन बहुतही ऊंची पंक्तिका है, इसके मुख्य तत्त्व विज्ञानशास्त्र के आधार पर रचे हुए हैं ऐसा मेरा अनुमान ही नहीं पूर्ण अनुभव है. ज्यों ज्यौं पदार्थविज्ञान आगे ढ़ता जाता है जैनधर्म सिद्धांतोंको सिद्ध करता है. x X X
जैनसाहित्यना संबन्धमा जर्मनीना डॉ. हर्टल पोताना लेमां जणावे छे
"Now what would Sanscrit poetry be without this large Sanscrit Literature of the Jainas! The more I learn to know it, the more my admiration rises."
Jain Shasan, Vol. I. No. 21.
अर्थात –“ जैनोना महान् संस्कृतसाहित्यने अलग पाडवामां आवे तो संस्कृतकवितानी शी दशा थाय ? आ विषयमां मने नेम जेम अधिक जाणवानुं मळे छे तेम तेम मारा आनंदयुक्त आश्चर्यमा वधारो थतो जाय छे. "
" "जैनशासन पु. १ अंक २१
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