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(६०) उपरथी स्पष्टीते अनुमान करी शकाय छे के बुद्ध अने महावीरे केटलाक विचारो तो आ पाखंडिओना मतोमांथी लीधा हता, अने केटलाक तेओनी साथे चालता तेमना सतत वादविवादनी असरथी उपजावी कढाया हता. मारुं एम धारदुं छे के सञ्जयना अज्ञेयवादनी विरुद्ध महावीरे पोतानो स्याद्वादनो मत स्थाप्यो हतो. अज्ञानवाद जणावे छे के जे वस्तु आपणा अनुभवनी पछे तेना संबंधमां अस्तित्व अगर नास्तित्व अथवा युगपत् अस्तित्व अने नास्तित्व विधान, अगर निषेध करी शकाय नहीं. तेज रीते पण तेथी उलटी दिशाए दोडतो स्याद्वाद एम प्रतिपादन करे छे के-एक दृष्टिए ( अपेक्षाए) कोई पुरुष वस्तुना अस्तित्वविधान करी शके ( स्याद् अस्ति ), तेम बीजी दृष्टिए तेनो निषेध करी शके ( स्याद् नास्ति ); अने तेवीज रीते भिन्न भिन्न कालमां ते वस्तुना अस्तित्व तथा नास्तित्वनुं विधान करी शके (स्याद् अस्ति नास्ति), परन्तु जो एकज काळमां अने एकज .. १ पोताना मौलिक विचारोथी बंधारण थएला एक शुद्ध धर्मने पछिलथी बीजा पाखंडिओना विचारो लईने भने नवीन उपजावी काडवाथी शुद्ध बनावी शकाय खरो के ? जो तेमज बनतुं होय तो बधाए धर्मों शुद्धज- बन्या होत, पण तेम देखातुं नथी. माटे आ अनुमान विचार बेवु लागे छे,
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