________________
(७३)
(३) पृ. ६२ मां “ बौद्ध अने जैन ए बन्नेओए पण पोतानो धर्म, नीति, शास्त्र, तत्त्वज्ञान अने सृष्टिनी कल्पनाओ विगेरे बधो प्रकार ब्राह्मणो पासेथी विशेष करी संन्यासिओ पासेथी लीधेलो छे, अहिं सुधी जे विवेचन कयु हतुं ते मात्र तेमनी दन्तकयाओ विगेरेने प्रमाण मानीने कर्यु हतुं पण पुख्त विचार करनार बार्थ साहेब ते दन्तकथाओ उपरथी अनुमान करी बेसवार्नु योग्य मानता नहता. " इत्यादि.
आ फकराथी लेखके ए सिद्ध करी बताव्युं छे के-जैनोना मुख्यसिद्धान्तोने जोतां पृ. ४५ थी ते पृ. ६२ सुधी जे जे अनुमानो करी बताव्यां छे ते यथार्थपणे थएलां नथी.
(४) पृ. ६४ मां" जैनलोको प्राचीनकाले पण बिलकुल क्षुद्र न होईने पोताना धर्ममतो विषे केवल उपर उपरनी कल्पना करनाराओ करतां विशेष होशियार हता ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे." ____ आ लेखथी तो अमोने ए विचार उद्भवे छे के-बौद्धधर्मना अने ब्राह्मणधर्मना तत्त्वो करतां पण जैनधर्मना तत्त्वो लेखकने केटलाबधा महत्त्ववाला भासमान थया हशे वारु ?
आगळ जतां लेखके जणाव्युं छे के-“ जैनोना चौदपूर्वनं ज्ञान यद्यपि लुप्त थई गएलं छे तोपण ते जैनोनी वातो कल्पित नथी
पा
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org