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(४७) विशिष्ट आत्मा रहेलो माने छे. आ जड-चैतन्यवादना सिद्धांत उपर असल सचेतनवादनुं विशेष परिणाम छे. वैशेषिकोए-लौकिक पुराणो उपरथी गोठवेलो छे. आ बन्नेमां जैनमत वधारे प्राचीन छे. वैशेषिकना चार शरीरवाला करतां पण, तत्त्वज्ञानना वधारे विकाशक्रमना समयनो जैन छे. वेदांत अने सांख्यना मूलतत्त्वभूत विचारो जैनविचारोथी तद्दन विरुद्ध छे. तेथी जनो तेमना विचारो स्वीकारी शके नहीं. इत्यादि कही आगल जतां, जनआगमोनो केटलोक उहापोह करीने कहे छे के आ ग्रंथनो वांचनार, भाषांतरकारनो अभिप्राय जाणवानी आशा राखतो होवाथी हुँ अत्यंत संकोचपूर्वक, मारो मत जाहेर करूं छु के जैनसिद्धांतग्रन्थोना घणा खरा भागो, प्रकरणो तथा आलापको खरेखर जूना छे. अंगोनुं आलेखन प्राचीनकालमां ( परंपरानुसार भद्रबाहुना समयमां) थयुं हतुं. इत्यादि विवेचन करीने उत्तराध्ययनादिकनी विशेष : उहापोह करीने आ बीजा भागनी प्रस्तावना पूरी करी छे.
३ पृ०९० थी डॉ० ओ० परटोल्डना व्याख्याननो सारधर्मोनी सरखामणीना , विज्ञानमां जैनधर्मवाळाने कयुं स्थान
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