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दुनियामां अनादिकालथी रहेला अनंतजीव पदार्थो अने अनंत परमाणुओ आदि अजीव पदार्थो वखतोवखत कोई एक विकारने प्राप्त थवाथी उत्पन्न थता अने तेवाज कारणथी रूपांतरने प्राप्त थता जाणीने, अज्ञानांधकूपमां पडेला भत्र्यप्राणीओने इंद्रियाऽगोचर सूक्ष्ममां सूक्ष्म पदार्थानो बोध आपी मुक्या छे प्रकाशमां जेणे, तेवो परम परमात्मा शुं एकज थतो हो ? ना, ते एकतो नहींज. पण-जैनसिद्धांतमां प्रसिद्ध-वीस कोडाकोडी सागरोपमनुं जे एक काळचक्र छे-तेमां एक उत्सर्पिणी काल छे, तेमां ते धर्मना प्रवर्तको चोवीसज थाय. अने तेज प्रमाणे बीजा अवसर्पिणीकालमां पण धर्मनी प्रवृत्ति कराववाना अधिकारवाला ते चोवीशज थाय. बाकी अधिकार विनाना पोताना कर्मानो सर्वथा नाश करीने गमे तेटला मोक्षे जाय तेनो तो नियम जैन सिद्धांतमां नथी. पण ते मोक्षे गयेला फरीयी पाछा आ दुनियामां आवे नहीं ए नियम तो जरुर छेज. आवा प्रकारना नियमथी अतीतकालमां अनंती चोवीशी थई गई अने भविष्यकालमां पण अनंती चोवीशीओ थया करवानीज, तेथी तेवा अनंत परमात्मा एकज प्रकार की उपदेशनो अधिकार भोगवी भोगवीने पोताना उद्धारनी साथे सत्य तत्त्वोनो प्रकाश करीने आ दुनियानो पण
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