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________________ ( ११०) प्रो. आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवना उद्गारो. = *E गूजरातना प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवे पोताना एक वखतना व्याख्यानमां " स्याद्वादसिद्धांत " विषे पोतानो अभिप्राय दर्शावतां जणाव्युं हतुं के " स्याद्वादनो सिद्धांत ” अनेकसिद्धांतो अवलोकीने तेनो समन्वय ( अर्थात् मेलाप ) करवा खातर प्रगट करवामां आव्यो छे. स्याद्वाद एकीकरणतुं दृष्टिबिंदु अमारी सामे उपस्थित करे छे. शंकराचार्ये स्याद्वाद उपर जे आक्षेप को छे ते मूल रहस्यनी साथे संबंध राखतो नथी. ए निश्चय छे के विविध दृष्टिबिंदुओद्वारा निरीक्षण कर्या वगर कोई वस्तु संपूर्ण स्वरूपे समजवामां आवी शके नहीं. आ माटे स्याद्वाद उपयोगी तथा सार्थक छे. महावीरना सिद्धांतमां बतावेल स्याद्वादने केटलाको संशयवाद कहे छे, ए हुं नथी मानतो. स्याद्वाद संशयवाद नथी किंतु ते एक दृष्टिबिंदु अमने मेळवी आपे छे. विश्वनुं केवी रीते अवलोकन करवू जोईए ए अमने शिखवे छे." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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