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शेष भिल्ल, संताळ, तोड, इत्यादि पहाडी लोकोना स्वरूपथी आज पण ओळखाय छे.
आ लोकोना मूळधर्मनो पत्तो लागतो नथी तोपण आजनो चालतो लौकिकसंप्रदाय अने प्राचीन धर्मशास्त्र आ बेनी सरखामणीवाळा मनुष्यशास्त्रना अने प्राचीन रहेला संप्रदायना साहाय्यथी सूक्ष्म विचार करीए तो ते धर्मनी कांईक बाबतो ओळखी शकाय तेम छे. आ विचार उपरथी एम देखाई आवे छे के आर्यपूर्वकालना हिन्दुस्थानमा छेवट बे विशिष्टजातिओना धर्म हता. आ बन्ने वर्ग जीवदेवस्वरूपना ( animistic ) हता के एक वर्ग जीवद्देवस्वरूपनो थईने बीजो जडदेवस्वरूपनो (Fetshistic) हतो. ए यथार्थ कही शकाय नहीं पण तेनो प्रादुर्भाव केवी रीते थयो ए कही शकाय तेम छे. तेमांथी एक जे स्वभावथी जडदेवस्वरूप होवानो संभव छे तेनो प्रादुर्भाव कांइक गूढ कारगथी उत्पन्न थएलो, क्षोभावस्थामां उत्कट भक्तिना अन्तपर्यन्त उन्मादमां अथवा आनन्दातिरेकमां मग्न थवाथी उत्पन्न थयो. जीवदेवना स्वरूपवाळो जे बीजो वर्ग हतो तेमां वैराग्य अने तपस्विवृत्तिनो संबन्ध हतो. आ बे तत्त्वना संबन्धथी मूळ आर्यधर्मनो. विकास थए अनेक पन्थ किंवा घणुंकरीने अनेक जुदा जुदा
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