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________________ (२३) लोकोने पण देखातुं एवं बन्ने धर्मोनू बाह्य निकट साम्य होवामां कंड संशय नथी. जे बे धर्मोमां एवी अनेक बाबतो बीलकुल सामान्य होय तेवा बे धर्मो बीलकुल स्वतंत्र होय ए अशक्य छे. कारण एवं साम्य जे धर्मोमां होय एमांनो कोईपण एक धर्म बीजामाथी नीकळेलो होवोज जोइए, एवा प्रकारनी जे एक वखत केटलाक पंडितोनी समज थइ गएली छे तेज कारणथी अनेक पंडितोना मतो ते बाजु तरफ वळेलां छे अने आजदिन सुधी पण घणाखरा पंडितो तेवाज प्रकारनो मत पकडीने बेठा छे. जैनधर्मग्रंथोनी जे वास्तविक योग्यता छे तेनुं तेवा प्रकार- स्वरूप लोकोना समक्ष मुकवू अगत्यतुं छे. ए संबंधी शोधखोळ करतां जैन धर्मना संस्थापक अने छेल्ला तीर्थकर जे महावीर तेमना विषयमा विशेष विवेचन कर जोइए. एटली शोधने अन्ते महावीर नामनी खरेखर कोइ व्यक्ति नथी पण जैनधर्मना अनुयायीओए जैन धर्म उत्पन्न थया पछी केटलाक सैकाओ गए महावीर नामनी एक व्यक्ति उभी करी छे, एवो जे आक्षेप छे तेनुं सारी रीते अने सयुक्तिक निराकरण थई शके तेवी माहिती हाल उपलब्ध थई छे एम समजवामां आवशेन. श्वेतांबर जैन अने दिगंबर ए बन्ने महावीर ए कुण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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