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आकाशनी उत्पत्ति थई. पछी आंखो उघडी तेथी ज्योतिय प्रगट थई. ते ज्योतिथी सूर्य उत्पन थयो, इत्यादिक सर्व झाड बीड मृत्यु विगेरे पेला पुरुषथीन उत्पन्न थयुं." एम विस्तार साथे ऐतरीयआरण्यमां लखेटु छे. हवे यजुर्वेदमां लख्युं छे केविराट्रपुरुषथी आ सृष्टि उत्पन्न थई. तेनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे" जे वखते ए विराट्ने बीजाने उत्पन्न करवानी इच्छा थई तेज वखते स्त्री अने पुरुष ए बन्ने एकल स्वरूपथी उत्पन्न थई गयां पछी जुदां पडीने स्त्री भर्ता रूपे बनी गया. त्यांथी मनुष्यनी वंशावली चालु थई. एज प्रमाणे पेलो पुरुष अने पेली स्त्री १ बन्नेए जे जे जातिनुं स्वरूप धारण कर्यु ते ते जातिनो विस्तार थतो गयो. जेमके-जल्द ने गाय. घोडो ने घोडी. गधेडो ने गधेडी." इत्यादि, ए प्रमाणे आ सृष्टि पेला विराष्ट्रपुरुषना संकल्पथी उत्पन्न थई. ॥ २ ॥
मंडूक उपनिषद् कहता है, मकडीजालके न्याई: कूर्मपुराणे विचारी जोता, नारायण मूल निपाई ।। वा.३॥
भावार्थ-"जेम करोलीयो पोते पोतानी जाते जाळु उत्पन्न करे छे अने पछी पार्छ पोतानामांन समावी दे छे तेज प्रमाणे
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