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(९४) सज्जनों ! जैनमतका प्रचार कबसे हुआ इस बारेमें लोगोंने नाना प्रकारकी उछल कूद किई है और अपने मनोनीत कल्पना किई है। और यह बात ठीक भी है जिस्का जितना ज्ञान होगा वह उस वस्तुको उतनाही और वैसाही समुझेगा । किसी अन्धेने हाथीके पूंछको धरा और कहने लगा कि हाथी लाठी जैसा लंबा होता है । परंतु दूसरे अन्धेने जब उस्की पीठ छुई तो कहने लगा कि वह छात जैसा होता है। परंतु हाथीके कानस्पर्श करने वालेने तो कहा कि वह सूप जैसा होता है। ____ तो बस यही हाल संसार का है, जिस्के यहाँ जब सभ्यता का प्रचार हुआ तो उसने उसी तारीखसे दुनियाकी सब बात मान ली । जो छः हजार वर्षसे सृष्टिको मान बैठे हैं उन्हें हम यदि अपना नित्यस्नानका संकल्प सुनावे तो वे हँस देगें, और कहेंगे कि कृष्ण बारह कल्प, श्वेत बारह कल्प, ब्रह्माका द्वितीय परार्द्ध, और मनु, मन्वन्तर, चतुर्युग व्यवस्था सब कल्पित है ।
तब उन्हें जैनमतप्रचारकी तारीख भी अवश्य ईस्वी समयके अनुसार ही कहनी होगी। और कह देंगे कि अधिक भी यदि जैनमतके प्रचारका काल कहा जाय तो छठीं सदी होगी । परंतु सज्जनों ! हम आपको ऐसी कच्ची मनमानी बात न
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