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________________ ( १८ ) भारतीय लोकसमाजमा जैन अने बौद्धधर्म एटलो बधो व्यापी गयो छे के 'पौराणिक धर्ममां अने पछीना पन्थमां तेमांना विचारोनुं, आचारोनुं अने तेओनी धर्मपद्धतिनुं तादात्म्य थई गयुं छे. ए भगवद्गीतादिग्रन्थोमां बोद्धोना निर्वाणादिशब्दो जे बिलकुल लीन थइ गया छे ते उपरे तुरत ध्यान आपवा जेवुं छे. पछी जैनधर्मनो द्वेष करतां करतां अमारा आचार विचार उपर, सन्ध्या पूजादि विधिओ उपर, हमेश बोलवाना स्तोत्रो विगेरे उपर पण तेनो असर थयेलो छे. ए जैन अने बौद्धोना सर्वे ग्रन्थोनुं कालजी पूर्वक अवलोकन करीए तो तरतज ध्यानमां आवी जशे . छेवटे वांचकोने एटलुंज कहेवानुं के, एक वखते जैन अने बौद्ध ए विषे अनेक कारणोथी जे विरुद्ध संबंध उत्पन्न थयो ते हवे मुली जइने जे धर्म हालना हिंदुधर्ममां विलीन थई गयेलो छे, ते धर्मना ग्रन्थो तरफ हालना विद्वानो कदाच अनुकंपानी बुद्धिथीज जोशे तो १ प्रथम बौद्धोने वैदिकधर्मवाला तरफथी शत्रुभूत मानेला परंतु जैन धर्मना अने बोद्ध धर्मना पूर जोसमां पोताना स्वार्थनी रक्षा माटे पुराणोनी रचना करी बुद्धने अवताररूपे मान्य राखी जैनोना अने बौद्धोना आचार विचारोने भेलसेलपणे गूंथन करी लोकोने थोभावी राखवा प्रयत्न करेलो पण पछी आद्यशंकराचार्यना वखते राज्याश्रय मल्या पछी बौद्धोनो नाश करवा प्रयत्न करेलो मात्र जैनो उपर पोतानी प्रभा पाडी शकेला नहीं. एम विचार करवाथी खुली रीते जणाई आवे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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