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दो पुस्तक देखा, वो लेख इतना सत्य, वो निःपक्षपाती, मुझे दिख पडा कि-मानो एक जगत् छोडके दूसरे जगत्में आन खडे हो गये. आबाल्यकाल ७० वर्षसे जो कुछ अध्ययन करा, वो वैदिकधर्म बांधे फिरा सो व्यर्थसा मालूम होने लगा....प्राचीन धर्म, परमधर्म, सत्यधर्म, रहा हो तो जैनधर्म था. जिसकी प्रभा नाश करनेको वैदिकधर्म, वो षट्शास्त्र वो ग्रंथकार खडे भये थे....वैदिक बातें कही वो लीई गई सो सब जनशास्त्रोंसे नमूना इकट्ठी करी है. इसमें संदेह नहीं" ॥
॥ इति त्रिजा लेखनो टुंक सार ॥ ..
४ पृ. ८२ थी-राममिश्र शास्त्रीजीना व्याख्याननो सार" जैनमत सृष्टिकी आदिसे बराबर अविच्छिन्न चला आया है. ___ आजकल अनेक अल्पज्ञजन बौद्धमत और जैनमतको एक जानते है यह महाभ्रम हैं. . बडे बडे नामी आचार्योंने अपने प्रथोमें जो जैनमतका खंडन किया है, वह ऐसा किया है कि देखकर हांसी आती है . एक दिन वह था कि-जैनसंप्रदायके आचार्योंके हूंकारसे दशों दिशाए गूंज उठतीथी.
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