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(३)
मी. बार्थनो आ मत एवा अनुमान उपर स्थिर थएलो - मालुम पडे छे के, जैनो पोतानुं पवित्र ज्ञान एक पेढीथी बीजी पेढीने आपवामां घणाज बेदरकार रह्या हता, अने तेम रहेवामां कारण एछे के, ते घणी शदीओ सुधी मात्र एक नानो अने अनुपयोगी संप्रदाय हतो. मि. बार्थनी आ दलीलमां हुं काई प्रकार वज़न जोई शकतो नथी. हुं अहीं ए प्रश्न पूहुं हुं केजे धर्म पोताना थोडाक अनुयायिओ वडे एक मोटा प्रदेश उपर पथराएलो होय ते धर्म पोताना मौलिकसिद्धांतो अने परंपराओने वधारे सुरक्षित राखी शके छे, के जे धर्मने एक मोटा जनसमूहनी धार्मिक जरूरीआतो पूरी पाडवानी होय छे ते ? ए बेमांनी कई बाबत वधारे संभवित छे ? जो के एकंदररीले आ प्रकारनी हेत्वाभासात्मक तर्कपद्धतिथी आवा प्रश्ननो निर्णय थवो तो अशक्यज छे उपर्युक्त वे पक्षोना प्रथम पक्षमां याहुदी तथा पारसी ओनुं उदाहरण रजु करी शकाय छे अने बीजा पक्षमां - रोमन कॅथोलिक धर्मनो दाखलो आपी शकाय छे. परन्तु जैनो संबंधी प्रस्तुत प्रश्नना वादविवादनो निर्णय करवामां आवी जातना सामान्य सिद्धांतो उपर आधार राखवानी कांई आवश्यकता नथी. कारण के तेओने ( जैनोने ) पोताना सिद्धांतोनुं एटलं बधुं स्पष्ट ज्ञान हतुं के तेओए घणीज नजीवी बाबतमां मतभेद धरावनार
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