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________________ जूदा प्रकारनी दिशा लगाडवा माटे खटपट करनारा लोकोनी जुदी संस्थान निर्माण करवानी आवश्यकता भासवा लागी. अने ए कार्य माटे पोतार्नु संसारसुख विगैरे सर्वनो भोग आपवानो एमणे निश्चय को. जे कोइने समाजमांना दुःखो देखीने ते दूर करवानी इच्छा होय तो तेना माटे सर्वस्वनो भोग आपी ते वातनी पाछल पडवा संसार छोडी देवो एम लागे ते वखते तेणे संसार छोडी दई प्रव्रज्या धारण करवी. ( संन्यास लेवो ) एवँ एक वाक्य छे. (यदहरेव विरजेत तदहरेव प्रव्रजेत्) त्यांथीन अमो बौद्धोना अने जैनोना संन्यासनी उत्पत्ति समजीये छे. तात्पर्य-पछी बधा संसारनो त्याग करी संन्यास ( दीक्षा) ग्रहण करी पोताना मतोनो उपदेश करवो एम माननारामां बुद्ध अने महावीर एवा वे राजवंशीय अग्रगण्य. निकळ्या. आखा जगतमांना संसारसुखमां अत्यंत स्पृहणीय जे राज्यपद तेनो खुल्लीरीते त्याग करी संन्यास लेई उपदेशकनुं काम करवामांज आनंद छे एम बोलीने नहीं पण प्रत्यक्ष कृतिथी बतावनारा न्यारे राजपुरुषो निकल्या त्यारे ते पक्षने घणुंज जोर मल्यु. ज्या ज्यां ए उपदेशको जता त्या त्यां मूर्तिमन्त राज्यसुखनो त्याग करेला ते अग्रणीओना व्याख्यानना श्रवणथी. लोकोना टोळेटोळां संन्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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