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श्रात्मा ही मेरी शरण पाता है।
कृष्ण पक्ष की १५ तिथियों में से क्रम-क्रम से तीन-तीन तिथियां सूर्य और चंद्र की हैं। जैसे प्रतिपदा, दूज, तीज ये तीन तिथियां सूर्य की हैं । चौथ, पंचमी, छठ ये तीन तिथियां चंद्र की हैं। इसी प्रकार अमावस्या तक शेष तिथियों में भी क्रमश: समझना चाहिए। इनमें जब अपनी-अपनी तिथियों में दोनों (सूर्य और चंद्र ) स्वर चलते हों तब वे कल्याणकारी होते हैं - २१
शुक्ल पक्ष की १५ तिथियों में से क्रम-क्रम से तीन-तीन तिथियां चंद्र और सूर्य की होती है, अर्थात् प्रतिपदा, दूज, तीज ये तीन तिथियां चंद्र की हैं तथा चौथ, पंचमी, छठ ये तीन तिथियां सूर्य की हैं। इसी प्रकार पूर्णमाशी तक शेष तिथियों में भी क्रमश: समझना चाहिए। इनमें भी इन दोनों (चंद्र और सूर्यस्वरों) का अपनी-अपनी तिथियों में प्रातःकाल चलना शुभकारी है-— २२ (छप्पय ) मंगल शनि आदित्य-वार, स्वामी रवि जानो । सुरगुरु बुध अरु सोम, शुक्र- पति चंद्र बखानो || इन विधि स्वर तिथि वार, भिन्न नक्षत्र पिछानो । शुभ कारज के योग्य, सकल इन विधि मन आनो ॥ निरगुण' सुरगुरण विध, भाव इन विध के लेखी । तत्त्व तरणों परकास, सुधा रस इम तुम पेखो ॥२३॥
बुध,
अर्थ -- मंगल, शनि और रवि इन वारों का स्वामी सूर्य है और सोम, गुरु, शुक्र इन वारों का स्वामी चन्द्र है ।
इस प्रकार स्वर, तिथि, वार तथा नक्षत्र को जानकर कार्य की सफलता के लिए इन सबका सूक्ष्म रीति से विचार कसे ।
५ - जब स्वर बाहर निकल रहा हो उस स्वर को निर्गुण कहते हैं जो स्वर . नासिका के भीतर जाता हो उसे सगुण स्वर कहते हैं । जो स्वर बदलकर नया चलना शुरू होता है उसे उदय स्वर कहते हैं तथा जब स्वर बदलने को होता है उसे प्रस्त कहते है । यदि स्वर संगुरण और उदय हो तो कार्य सिद्ध हो 1 इससे विपरीत हो तो कार्य की हानि हो ।
सर्वे प्रवेश - काले कथयन्ति मनोगतं फलं पुंसाम् । "अहितमति दुःखानचित त एवं निःसरणवलायाम् ॥ ३शा
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