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वस्तुतः बन्ध और मोक्ष अपने अन्दर ही होते हैं ।
परिशिष्ट
| चिदानन्द जी कृत " अध्यात्म अनुभव योग प्रकाश" ग्रन्थ में से ] योग शब्द का अर्थ
दो तीन वस्तु के मिलने का नाम योग है । वही दिखाते हैं कि, जैन धर्म में मन वचन और काया के व्यापार को योग कहते हैं । ज्ञान, दर्शन और चरित्र को भी योग कहते हैं । करना, कराना और अनुमोदन को भी योग कहते हैं । अथवा अष्टांग योग प्रसिद्ध ही है । जिस-जिस वस्तु की योजना की जाय उसे भी योग कहते हैं, इस प्रकार योग तो कई तरह के होते हैं; परन्तु इस जगह तो शास्त्र के अनुसार अथवा पातंजल योग के अनुसार योग का वर्णन करते हैं ।
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८२. प्रत्येक मनुष्य को नीचे की तीन बातें जानने की उत्कंठा रहती है और वे बातें इस शास्त्र द्वारा जानी जा सकती हैं ।
१ - बालारिष्ट - अर्थात् यह बालक १ से १० वर्ष तक जीवित रहेगा या नहीं ? इसका प्रथम निर्णय करना चाहिए क्योंकि यदि इस बात का निर्णय न किया हो तो अल्पायु होने से निमित्त शास्त्र से महान योगों का फल बतलाकर मूर्ख निमितज्ञ हंसी का पात्र बनता है ।
• तथा बालारिष्ट यदि सूक्ष्म रीति से देखना आता हो तो उसके साथ अरिष्टभंग के योग हैं या नहीं इसका भी निश्चय करना चाहिए । यदि अरिष्ट भंग हो तो उस बालक को योग्य रीति से शारीरिक स्वास्थ्य को सावधानी पूर्वक निरोगी और सुदृढ़ बनाया जा सकता है । २ - मनुष्य की आयु कितने वर्षों की है उसका निर्णय करना चाहिए । आयु दो प्रकार की होती है— कर्मज और दोषज । कर्मज अर्थात् मनुष्य यदि
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