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जो कर्तव्य पथपर उठखड़ा हुआ है उसे फिर प्रमाद न करना चाहिए।
ऐसा कहकर पजावे पर जाकर मोदकों (लडुओं) का चूर्ण करते हुए शुद्ध भावना-बल से कर्मों को चूणं किया और केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। ..
ऐसे ही श्री वर्धमान स्वामी ने भी अनेक तरह के मौनादि अभिग्रह लिए। सो श्री महावीर स्वामी का वर्णन श्री कल्पसूत्र अथवा इनके चारित्र से जानो यह हठयोग का शब्दार्थ कहा, अब कुछ साधन करने वाले के विषय में कहेंगे।
"हठयोग का अधिकारी हठयोग करने वाले को प्रथम-ब्रह्मचारी होना चाहिए । दूसरा-उसे क्षुद्र अर्थात् ओछी प्रकृति का न होना चाहिए। क्योंकि जब क्षुद्र प्रकृति का होगा तो सबके सामने गुरु की बताई रीति कहता फिरेगा और योग्य अयोग्य को न देखेगा, थोड़े ही में उसे अभिमान हो जाएगा, लोगों को चटक मटक दिखाने लगेगा। इसलिए गम्भीर प्राशय वाला होना चाहिए। क्योंकि गम्भीर आशय वाला होगा तो योग्य अयोग्य को देखेगा और किसी को अपना
८३. स्त्री-स्वरोदय शास्त्र कई लोगों के मन में साधारणतया यह शंका उत्पन्न होती है कि इस स्वरोदय का विधान स्त्री-पुरुष दोनों के लिए एक ही प्रकार का है अथवा भिन्न-भिन्न ? यह शंका होने का मूल कारण यह है कि स्त्री पुरुष की वामांगना कहलाती है और वास्तव में उसके वामांग को प्राधान्य भी है।
शरीर रचना की दृष्टि से विचार करें तो स्त्री-पुरुष से भिन्न है । परन्तु स्वरोदय की दृष्टि से स्त्री-पुरुष दोनों के लिए स्वर सम्बन्धी तमाम नियम समान रूप से ही लागू पड़ते हैं। अर्थात् उपर्युक्त सब नियम स्त्री-पुरुष के लिए एक समान ही समझने चाहिए । स्त्री-पुरुष का भेद स्वर की दृष्टि से नहीं परन्तु अमुक शारीरिक रचना के कारण से है। ऐसा समझकर सब काम करना चाहिए।
इस सृष्टि में पुरुष सूर्य का प्रतिनिधि तथा स्त्री चंद्र की प्रतिनिधि है। ऐसा स्वर शास्त्र में स्पष्ट दर्शाया गया है। इसलिए पुरुष में सूर्य प्रधान गुण विद्यमान हैं तथा स्त्री में चंद्र प्रधान गुण विद्यमान हैं। स्वरोदय विज्ञान
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