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ऊंचे उठकर समत होकर अपने आश्रितों को आश्रय दो ।
४. करुणा भावना
इस संसार में सर्व जीवों को अपने सदृश समझ कर किसी जीव की हिंसा न करे, अथवा धर्महीन जानकर उसके ऊपर करुणा से उसका दुःख दूर करे, या ऐसा विचार करे कि यह जीव किस समय में धर्म पावेगा; इसको करुणा भावना कहते हैं। इन भावनाओं को भावें ।
अब जिन पांच तत्त्वों को प्रभेद करके आधार करे, उनको दिखाते हैं— जिस समय आत्म-साधन में प्रवृत्त हो, उस समय समझे कि मैं साधु हुआ, उस समय उसका साधुत्व से अभेद हो गया। जब उपाधि को दूर किया र आत्मा का अध्ययन करने लगा, तब उपाध्यायपद से प्रभेद हो गया, और उपाध्याय से अभेद होकर साधन का जो कालापन वह दूर होकर हरापन हो गया । जिस समय आत्मा ज्ञान, दर्शन और चरित्र रूप आचार में प्रवृत्ति हुई, उस समय श्राचार्य पद में अभेद हुआ । जब चार अरि ( दुश्मन) अर्थात् ज्ञानावरणादि वैरियों को मारा, उस समय अरिहंत तत्त्व से अभेद हुना, और अरिहंत तत्त्व में मिला। जिस समय तेज रूप प्रताप बढ़ा, और कुल पुद्गलादि को तेज रूप अग्नि में जलाया, तब सिद्धरूप तत्त्व में प्रभेद हो गया ।
इस रीति से आधार आदि चार भेदों का वर्णन लिखा है । जिन पर गुरु की कृपा हुई, उन्होंने इसका अनुभव पूरा पाया, सर्वज्ञों ने सिद्धान्तों में अनेक रीति से दर्शाया है हमने तो यहां ग्रन्थ विस्तृत हो जाने के भय से किञ्चित स्वरूप ही दिखाया है ।
“ मानसी पूजा की विधि
मानसी पूजा का विधान इस प्रकार है, कि जो ऊपर लिखी बातों से युक्त होगा, वही पुरुष मानसी - पूजन कर सकता है; क्योंकि देखो, जिन कमलादि चक्रों का प्रथम वर्णन किया है, उनको देखने के वास्ते तैयार होवे तो उसके बाद मानसिक पूजन करे; उसी का नाम मानसिक पूजन है। उस जगह जो वस्तु अर्थात् कुल सामग्री जो कि मन से बनाई हुई है, मन से ही उसकी शुद्धि करना और जो द्रव्य जिस आकार का है उसी आकार का उसको मन से कल्पे, और जिस
८८. मानसी पूजा की विधि परिशिष्ठ में देखें ।
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