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सेरे मन, वाणी, प्राण एवं श्रोत्र सब. शान्त तथा निर्दोष हों।
शरीर को धारण किया उस शरीर की आयु को क्यों न बढ़ाया, काल को क्यों न हटाया ?
और भी एक दूसरी बात सुनो, कि आदिनाथ से लेकर मच्छन्दरनाथ, जलन्धर नाथ, गोरक्षनाथादि अनेक योगीन्द्र योगाभ्यास कर-करके ग्रंथ रच गए, समाधि में पच गए, हठ योग में नाम अपना कर गए, शरीर को छोड़कर हंस ले उठ गए । तो कहो यदि समाधि में आयु बढ़ती है तो उन्होंने अपनी प्रायु क्यों न बढ़ाई ? उनकी शरीर मूर्ति अब देखने में न आई, तेरी आयु बढ़ाने की बात क्यों कर विश्वास कर ले भाई ?
अब इस जगह पर कोई ऐसा कहे कि गोरक्षनाथ, गोपीचंद्र, भर्तृहरि आदि योगीन्द्र अमर हैं, परन्तु संसारी लोगों को दिखाई नहीं देते और कभी-कभी किसी को मिलते भी हैं परचा भी बता देते हैं, ऐसी लोगों में प्रसिद्धि है। - इसका समाधान यह है कि गोपीचन्द्र, भार्तृहरि, गोरक्षनाथादि अमर हैं, वे नाम करके अमर हैं, परन्तु शरीर करके नहीं हैं। यहां पर मुझे दोहा का स्मरण हुआ है, वह इस स्थान पर उपयुक्त जानकर लिखता हूं
दोहा "सुत नहीं अबला जन सके, मन नहीं सिन्ध समाय ।
धर्म न पावक में जले, नाम काल नहीं खाय ॥ १॥ इसलिए जिन-जिन पुरुषों का नाम बाल-गोपाल आदि जानते हैं और लेते हैं, लोग उनकी महिमा गाते हैं, और पिता, पितामह, प्रपितामह, अथवा उनके भाई बेटों का नाम कोई नहीं लेता, इसलिए उनका नाम अमर है। यदि वे शरीर करके वर्तमान हैं, तो सब मनुष्यों को दर्शन क्यों नहीं देते हैं ? जो तुम ऐसा कहो कि सांसारिक लोग उनको बहुत सतावें इसलिए दर्शन नहीं देते। तो हम कहते हैं, कि जिस समय वे घर छोड़कर योगी बने थे, उस समय योग साध कर भिक्षा लाते थे और घर-घर फिरते थे और मनुष्यों से मिलते थे, उपदेश भी देते थे, तो अब यदि उनका शरीर है तो भिक्षा के बिना किस प्रकार रहते होंगे ? यदि तुम कहो कि बन में रहते हैं, कन्द-मूल फल खाते हैं, आत्मध्यान लगाते हैं, घर-घर पर भिक्षा के वास्ते आवाज नहीं लगाते, दुनियादारी
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