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ज्ञानी प्रत्येक संघर्ष में प्रसन्न रहते हैं ।
यह ठगों से बचने का हमारा मूल मन्त्र पहचानो, जिससे कभी इसी रीति से समाधि के भेद कहे गये हैं ।
अब धारणा, ध्यान, समाधि किंस को कहते हैं, तथा शास्त्रकार उसका भावार्थं क्या बताते हैं सो दिखाते हैं । पहले इनका शब्दार्थ बताते हैं ।
ध्येय वस्तु को समझ कर उसको ज्ञ ेय, हेय, उपादेय रूप से धारे, अथवा हेय को छोड़कर उपादेय को धारे, उसका नाम धारणा है । ध्येय वस्तु को ठहराना - उसमें मन को लगाना, उसका नाम ध्यान है । ध्यान से अधिक बाह्य वृत्तियों को त्याग कर आत्म स्वरूप में लग जाना, उसका नाम समाधि है ।
अब 'गोरक्षपद्धति' की रीति से धारणादि पहले दिखाते हैं । वहां धारणा ९ श्लोकों में कही है। इस जगह हम वहां के थोड़े आवश्यक श्लोक लिख कर दिखावेंगे । ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से अधिक नहीं लिख सकते ।
" आसनेन समापुक्तः प्राणायामेन संयुतः ।
प्रत्याहारेण सम्पन्नो धारणाञ्च समभ्यसेत् ।। ५२ ।।
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हृदये पञ्च भूतानां धारणा च पृथक् पृथक् । मनसो निश्चलत्वेन, धारणा साऽभिधीयते ॥ ५३ ॥
कर्मणा मनसा वाचा, धारणाः पञ्च दुर्लभाः । विज्ञाय सततं योगी, • सर्वदुःखैः प्रमुच्यते ॥ ६० ॥ अर्थ – आसन का और प्राणायाम का साधन स्थिर करके इन्द्रिय वृत्ति को रोकने की सामर्थ्य होने के बाद धारणा का अभ्यास करे । हृदय में मन और प्राण को निश्चल करके पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पञ्चभूतों को पृथक्-पृथक् धारण करना उसका नाम धारणा है ।
इसके आगे जो श्लोक हैं, उन सब में पांचों तत्त्वों का बीज सहित और देवता समेत चक्रों में ध्यान करना कहां है अथवा हृदय में ध्यान करना कहा है वह उस पुस्तक से देखो । जो कर्म अर्थात् अनुष्ठान से, मन के चिंतन से, वचन अर्थात् शास्त्र-संज्ञा के प्रमाण मानने से निरूपण कर पांचों धारणानों को जानकर अभ्यास करता हैं वह सर्व दुःखों से मुक्त होता है, यह धारणा
हुई ।
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