Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 344
________________ दूर रहने वाला पीड़ित करे और न पास रहने प्रवृत्तियों का पोषण नहीं करेंगे । यदि जीवन हल्का-नीच होगा तो उससे नीच वृत्तियों का ही पोषण होगा । यदि जीवन उच्च होगा तो उसकी वृत्तियां भी उच्च प्रकार का पोषण पायेंगी । अच्छे या बुरे निमित्त से वृत्तियों में परिवर्तन हुए बिना नहीं रहता । राजा यदि सात्विक वृत्ति का होगा तो उसमें अहिंसा, सत्य, प्रमाणिकता, क्षमा, नम्रता, उदारता, परोपकार, प्रेम, सत्कार, न्याय, शील, वीरता, धर्म, वात्सल्यता, ज्ञान, भक्ति, परमार्थ, सेवा, रक्षण, दान, गुरुभक्ति, प्रतिषि सत्कार, विनय आदि उच्च वृत्तियां ही पोषण प्राप्त करेंगी; यदि राजसी प्रकृति वाला वैभवशाली जीवनवाला, विलासी स्वभाव वाला होगा तो उस में विषयेच्छा, स्वार्थपरता, महत्वता, स्वार्थ साधक परोपकार, दया दान, कीर्ति और कर्त्तव्य पालन आदि मध्यम वृत्तियां ही पोषरण पायेंगी, तथा स्वार्थमय भावनाएं प्रथवा इच्छाएं पुष्ट होते हुए प्रसंगोपात अनेक प्रकार की हल्की - नीच वृत्तियां अन्तःकरण में बढ़ती जायेंगी । और यदि राजा तामसी प्रकृति वाला होगा तो अपने भोजन के लिये. मौज-शौक के लिये, और अधिकार के लिये उसके मन में क्रोध, अभिमान, कपट, लोभ, राग-द्व ेष, तिरस्कार, अन्याय, असत्य, प्रमाणिकता, व्यभिचार, कुव्यसन, कायरता, अधर्म, अनीति, निर्दयता दे, महत्ता, ईर्ष्या, द्वेष और मोह इत्यादि वृत्तियों का पोषण होगा। तथा उन पोषरण पाई हुई वृत्तियों को भोगने के लिये जहां अनुकूलता होगी वही उसे फिर जन्म लेना पड़ेगा । धर्म-गुरु यदि सात्विक प्रकृति वाला होगा तो उसके हृदय में सात्विक वृत्तियां होंगी; परन्तु यदि वह हठीला, [जिद्दी ] धर्मान्ध, अथवा अज्ञानी होगा तो तामसी प्रकृति वाले राजा के समान ही वृत्तियां प्रायः उसके हृदय में भी होंगी। क्योंकि वह धर्मगुरु भी एक बड़ा आदमी है, तथा अधिकार की गरमी भी कुछ भिन्न प्रकार से प्रायः वैसी ही उसमें भी होती है । मनुष्य यदि उद्यमी होगां तो पुरुषार्थ, स्वाधीनता, उत्साह, स्वतन्त्रता, वीरता आदि की वृत्तियां उसमें होंगी। इन वृत्तियों से उसके जीवन के www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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