Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 346
________________ सूर्य का उदय होना, एक प्रकार से मेरे भाग्य का उदय होना है। जैसा बीज होगा वैसा ही फल भी उत्पन्न होगा। इस दृष्टांत के अनुसार हमारी वृत्तियां जैसी होंगी वैसे ही हमें फल भी भोगने पड़ेंगे। इसलिए प्रत्येक व्यवहार या परमार्थ के समय मनुष्य को अपनी वृत्तियों की जांच . करते रहना चाहिये । वृत्ति के मूल कारण तथा इसके भावी फल या संस्कारों के पड़ने की ओर भी लक्ष्य रखना चाहिए। तथा एक वृत्ति में से अनेक वृत्तियां किस प्रकार विस्तार पाती हैं इन्हें भी ध्यान में रखना चाहिये। इस प्रकार निरीक्षण करते रहने से मन की कौन सी वृत्तियों को उत्पन्न होने देना चाहिये और कौन सी को नहीं, इस बात को समझने और समझ कर वृत्तियों को स्व-इच्छानुसार बदलने की कुञ्जी हमारे हाथों में आजाएगी। साथ ही इनके भावी ज़िन्दगी जैसी बनाना चाहेंगे वैसी बनाने का बल भी हमें प्राप्त हो जाएगा। अपनी वृत्तियों की तरह दूसरे की वृत्तियों का भी निरीक्षण करते रहना चाहिये और निरीक्षण करते हुए अपने मन में ऐसा विचार करना चाहिये कि यदि मैं ऐसी परिस्थिति में आऊं तो उस समय मुझे किस प्रकार की वृत्ति रखनी होगी अथवा कैसा व्यवहार करना होगा। ऐसा करने से भविष्य में ऐसे प्रसंग उपस्थित होने पर विशेष जागृति रखने का तथा नवीन.बीजवाली वृत्तियों को रोक सकने का बल प्राप्त हो सकेगा। ___ योग के मार्ग में आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले हर एक मनुष्य को वहार के प्रत्येक अवसर पर अपनी वृत्तियों का निरीक्षण करते रहना चाहिये । धृत्तियों का निरीक्षण करने की दिशा सूचन करने के लिये ही यह संक्षिप्त विवरण दिया है । यह विवेचन शांति के मार्ग का बीज है। जो. बीज बोचा है वही फल प्राप्त करता है । __ धर्म का बास्तविक स्वरूप इस प्रकार वृत्तियों का निरीक्षण कर उन वृत्तियों को बनाने में ही है अर्थात् तमोगुण में से रजोगुण तथा रजोगुण में से. सत्वगुण में आने का अभ्यास करना चाहिए । जब तक ऐसा अभ्यास नहीं किया जाता तब तक हृदय निर्मल नही होता तथा अनेक जन्म तक धर्म करते हुए भी उसका उत्तम फल प्राप्त नहीं होता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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