Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 345
________________ म मेरा वचन दुध जैसा मधुर, सारयुक्त एवं सबके लिए उपादेय हो। संयोगों तथा निमित्तों के प्रमाण में दूसरी वृत्तियां भी परिपुष्ट होंगी। मनुष्य यदि आलसी, कर्जदार या भिखारी होगा तो दुःख, कायरता, निराधारता, निरुत्साह, मंदता, अज्ञान, असंतोष, लोभ, क्लेश, केवल दुःखमय विचार, ईर्ष्या, द्वेष, आदि की वृत्तियां मुख्यता उसमें होंगी तथा उसके उस समय के संयोगों के प्रमाण में दूसरी भी क्रोधादि की वृत्तियां पुष्ट होती रहेंगी। फौजदार अथवा जेलर के हृदय में निर्दयता, निष्ठुरता, चंचलता, सत्ताबल आदि वृत्तियां स्वाभाविक ही हो जाती हैं। -- नौकरों के चित्त में उनके स्वभावानुसार प्रमाणिकता अथवा अप्रमारिणकता की वृत्तियां हुआ करती हैं। शिकारियों और कसाइयों के–जो खुराक के लिये पशुओं को पालते हैंहृदयों में हिंसा, क्रूरता, लोभ आदि की वृत्तियां होती हैं। । अनाज आदि के व्यापारियों के हृदय में अनाज आदि लेते समय शांति की तथा बेचते समय अशांति की वृत्ति होती है । - सामान्यतया सभी तरह के व्यापारी शान्ति अथवा अशान्ति के समयउनका माल बिके मान बिके तो भी उसी प्रकार के प्रसंग तथा काल के ऊपर अपनी उच्चका नी वृत्तियों को पोषण दिये बिना नहीं रहते । किसानों की भावनायें भी बोते समय और बेचते समय प्रायः जुदा-जुदा हुआ करती हैं। उन भावीमों के अनुसार ही उनके हृदयों में शान्ति या प्रशान्ति, सुख या दुःख, मोह-लोभ आदि की वृत्तियां पुष्ट हुआ करती हैं । इष्ट वस्तु या प्रियजन के वियोग में प्राय: मोह, शोक अज्ञान, दुःख आदि की वृत्तियां मुख्यतया हुआ करती है । अनिष्ट वस्तु अप्रिय या शत्रु मनुष्य अथवा रोगादि के समय हिंसा, तिरस्कार, अभाव, दुःख की वृत्तियां होती इतनी बातें तो केवल ऐसी ही वृत्तियों के विषय में कही गई हैं, कि जिनका प्रत्यक्ष में अनुभव होता है, परन्तु एक वृत्ति के साथ अन्य भी अनेक वृत्तियां प्रसंगानुसार हो जाती हैं। इस सारे विवेचन का सार यह है कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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