Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 350
________________ अनुचित कार्य से महत्त्व का, अन्याय से कीति का नाश होता है। स्थिरता अथवा एकाग्रता बढ़ती जाती है, तथा वृत्तियां उठती हैं तो मक ज्ञान द्वारा तोड़ने का काम चालू होता है । वृत्तियों को उठने न देकर दबाये रखने से वे सत्ता में दबी हई पड़ी रहती हैं तथा बलवान निमित्त मिलने पर वे विशेष जोर के साथ बाहर आती हैं। हृदय में शान्ति की छाया नीचे अवलोकन करते रहने से सत्ता में रहे हए कर्म धीमे-धीमे बाहर आते हैं। यह कर्म तोड़ने का पुरुषार्थ है। वृत्ति के अवलोकन रूप ध्यान द्वारा जब कर्म बाहर आते हैं तभी हमें ज्ञात होता है कि अभी इस प्रकार के कर्म मेरे अन्दर विशेष या कम प्रमाण में रहे हुए हैं तथा अमुक प्रकार की वत्तियां न उठने के कारण से उस प्रकार के कर्म कम हुए हैं। जो कर्म अपने अन्दर विशेष प्रबल होंगे उनसे विचार बार-बार आयेंगे तो भी हमें जाप और अवलोकन शुरू ही रखना चाहिए । जाप "ॐ" कार का, “सोहं" का और “शान्ति" का तीनों तरह का प्रसंगानुसार करना चाहिए। ___ जाप रूप हल द्वारा ज़मीन की तरह कर्म खुदते हैं। तथा शान्ति जाप की छाया नीचे वृत्ति अवलोकन' रूप फावड़ा द्वारा खुरच कर वे कर्म बाहर निकाल दिये जाते हैं। __ध्यान के सिवाय दूसरे समय में वत्तियों को तोड़ने का ज्ञान प्राप्त करने के लिये, आत्मा के शुद्ध स्वभाव को बतलाने वाले, कर्मों के अचल नियमों को समझाने वाले तथा मन की वृत्तियों के स्वरूप को बताने वाले ग्रन्थों को पढ़ना बहुत उपयोगी है। दिन में हर समय वत्तियों का अवलोकन करते रहना चाहिये मन में उठते हुए विकल्पों को वृत्तियां कहते हैं। एक में से अनेक वृत्तियां उठती हैं । यदि हमारी जागृति न हो तो उनका इतना विस्तार बढ़ जाता है कि घण्टों तक उनका अन्त नहीं हो पाता। .. यह विकल्पों वाला मन आत्मा के आगे आवरण रूप खड़ा रहकर उसके आवरणों में वृद्धि करता रहता है। विविध इच्छाओं या वासनाओं वाले विकल्प सत्ता में रहे हुए कर्मों में से बाहर आते हैं तथा वाहर के पदार्थों के निमित्त भी वह विविध प्रकार की इच्छाए करते हैं। इन इच्छाओं के निमित्त से राग-द्वेष, हर्ष-शोक पैदा कर नये कर्म बीजों का संचय कराते हैं । अपनी निर्बल इच्छाओं में से ही इनका जन्म होता है । जाप का फल वृत्तियों को मन से जुदा कर, इन्हें नाश करने का है । मन से वृत्तियां जुदा हुई तब समझना चाहिये कि जब इनका असर मन पर होना सर्वथा मिट जाए । खोजने से भी वृत्ति न मिले और आकृति बने बिना ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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