Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 353
________________ ग्रंथकर्ता का परिचय महानसंत चिदानंद जी उन्नीसवीं शताब्दी में काशी में खरतरगच्छ के उपाध्याय श्री चरित्र गणि परमगीतार्थ थे । जिनके गुरु निधि उपाध्याय के दो शिष्य चिदानन्दजी (कपूरचन्द जी) और ज्ञानानन्द जी बड़े उच्चकोटि के कवि और आध्यात्मिक पुरुष हुए हैं । श्री चिदानन्दजी महाराज का स्वरोदय ग्रंथ उनकी योगसाधना और तद्विषयक ज्ञान का अच्छा परिचायक है, आप ने स्वरोदय ज्ञान नामक ग्रंथ में जगह-जगह पर जोर दिया है कि योगाभ्यास सभ्यग्दृष्टि योगी गुरु की सेवा में रहकर करना परमावश्यक है। आपने यह भी लिखा है कि जिस सभ्य दृष्टि योगी गुरु से आप ने योगाभ्यास किया था वे उच्चकोटि के विद्वान योगी थे परन्तु आश्चर्य होता है कि आपने उन गुरु का नाम अथवा परिचय.. तक भी नहीं दिया आपकी पुदगल-गीता, बावनी, बहुत्तरी-पद और स्तवनादि भी उच्च कोटि की काव्य कला और अनुभव ज्ञान से ओतप्रोत हैं। क. ताओं का सर्जन, सौष्टव, फवते उदाहरण और हृदयग्राही भाव अत्यन्तु श्लाघनीय हैं । आप गुजरात भावनगर आदि में काफी विचरे थे। मध्य-: प्रदेश में भी घूमे थे। भावनगर की जैनधर्म प्रसारक सभा द्वारा' चिदानन्द, , सर्व-संग्रह दो भागों में आपकी समस्त कृतियां प्रकाशित हैं। गद्य में भी अनेक जैन दार्शनिक, सैद्धान्तिक तथा योग सम्बन्धी ग्रन्थों का निर्मान में आपने किया है। श्री चिदानन्द जी के गरु भ्राता श्री ज्ञानानन्द जी भी उच्चकोटि के अध्यात्म योगी थे। आपके शताधिक पदों का संग्रह ज्ञानविलास और संयम , रंग रूप में साठ वर्ष पूर्व वीरचन्द पानाचन्द ने प्रकाशित किया था। श्री चिदानन्दजी महाराज पहले पावापुरी में गांव मन्दिर के पृष्ठ भाग की कोठारी में ध्यान किया करते थे और पीछे गिरनारजी, पालीताना व राजगृहि सम्मेतशिखरजी में भी रहे। सम्मेतशिखरजी में, गिरनार जी में तथा अन्यत्र भी आपकी ध्यान-गुफाएं प्रसिद्ध हैं। भावनगर के पास आपने छीपा जाति को प्रतिबोध देकर जैन बनाया था। तीस वर्ष पूर्व जब भद्रमुनि जी महाराज भावनगर पधारे। तब उस जातिवालों ने कहा-आप खतरगच्छ के श्री चिदानन्द जी महाराज द्वारा प्रतिबोधित हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354