________________
द्वेष से दूर रहिए सबको निर्भय बनाइये।
भेदों को करता है, वे ये है:
तीसरे सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती भेद का वर्णन सूक्ष्म मन, वचन, काय रूप जो योगी की वृत्ति आत्मा में थी, उसको भी रोक कर "शैलेशीकरण" करके अयोगी होकर "अप्रतिपाती'' जिसको पतन न हो ऐसा जो निर्मल वीर्य, अचलता रूप परिणाम, उसको सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती कहते हैं। इस जगह कर्मों की प्रकृतियां सत्ता में ८५ थीं उनमें से ७२ निकालने से तेरह बाकी रह जाती हैं ।
. चतुर्थ उच्छिन्न-क्रिया निवृत्ति भेद का वर्णन : जब योगी योग-निरोधं करने के पीछे जो तेरह प्रकृतियां थीं, उनको भी दूर करके अकर्मा हो जाता है, तब सब क्रियाओं से रहित हुआ, इसलिए उसको उच्छिन्न-क्रिया निवृत्ति कहते हैं । उस समय योगी धारणा की ध्यान लय रूप समाधि से शेष दल विखरण रूप क्रिया उच्छेद और शरीर की अवगाहना में से तीसरा भाग' घटाकर शरीर छोड़कर चौदह राजलोक के ऊपर लोक के अन्त में स्थित सिद्ध-क्षेत्र में विराजमान होता है।
अब इस जगह यह शंका होती हैं कि चौदहवें गुणस्थान में अक्रिय हो गया तो फिर सात राज ऊंचा. कैसे जाता है ? अक्रिय होकर क्रिया कैसे करता है ?
समाधान:-सिद्ध तो अक्रिय है, परन्तु जल तुम्बिका न्याय अथवा दण्डचक्र-भ्रमण रूप न्याय से पूर्वक्रिया के बल से वह ऊंचा जाता है । सो दोनों दृष्टान्त दिखाते हैं :-जैसे तूंबी मट्टी, कपड़ा का लेप से अथवा कोई भारी चीज नीचे या ऊपर होने से पानी में डूब जाती है। परन्तु जब वह लेपादि दूर हो अथवा जो भारी चीज़ का ऊपर-नीचे संयोग था, सो दूर हो तो फिर तुम्बी पानी में नीचे नहीं रहती, ऊपर को चली आती है। वैसे ही जीव के कर्मरूपी लेप का वजन प्रदेशों के ऊपर होने से वह संसार रूपी जल में डूबा रहता है। जिस समय वह कर्मरूपी लेप अर्थात् भारीपन दूर होने से हलका होता है तब ऊपर को अपने आप चला जाता है। यहां जैसे तूम्बी जल के नीचे से ऊपर आती और क्रिया करती है, वैसे ही जीव भी कुछ क्रिया न कर सिद्ध क्षेत्र में विराज
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org