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हम पापाचार से दूर रहकर पूर्ण निर्भय भावमें विचरण करें
इत्यादि
कविता का करना, प्रश्न का उत्तर देना, पीठ पर लिखे का ख्याल करना, आठ काम कर सकता है ।
उत्तर - हे देवानुप्रिय ! तुम्हारे प्रश्न को सुनकर मुझको आश्चर्य हो गया है, तुम्हारी लिखी आठ बातों का एक समय में करना बुद्धि में न समाया, मेरे मन में असम्भव आया, क्योंकि सर्वज्ञदेव ने समय को बहुत सूक्ष्म कहा है, एक पलक के लगाने में ही असंख्य समय हो जाते हैं, फिर आठ बातें करना एक समय में किस प्रकार सिद्ध होगा ? देखो पांच हस्व अक्षर अर्थात् अ, इ, उ, ऋ, ल इनके उच्चारण में ही अनेक समय लगते हैं, अर्थात् अ, इ, के आगे-पीछे होने में अन्तर पड़ जाता है, क्योंकि अकार का उच्चारण करने के पीछे 'इ' का उच्चारण होता है तो आठ बात एक समय में क्यों कर बनेंगी ? बल्कि 'क' इस अक्षर में ही सूक्ष्म बुद्धि से विचार करें तो आदि और अन्त तक उच्चारण करने में ही अनेक समय बीत जाते हैं, क्योंकि 'क' की आदि के पीछे अन्त भाग का उच्चारण होगा । बुद्धि-पूर्वक हमारे वचन को विवेक सहित विचार करो । जो ऐसा कहते हैं कि हम आठ बातें एक समय में करते हैं, क्योंकि हमने योगाभ्यास से अष्टावधान सिद्ध कर रखा है । वे लोग योगशास्त्र से अनभिज्ञ हैं । इस विषय में व्याकरणादि में ऐसा कहा है, सो सारस्वत चन्द्रकीर्ति टीका का लेख दिखाते हैं ।
" मात्रा काल विशेष: स्यात्, अक्षिस्पन्दप्रमाणः कालो मात्रा ।" और जैन मत में तो समय बहुत सूक्ष्म कहा है । उसका तो अध्यात्मी, योगाभ्यासी, युंजान अवस्था में युक्त योगी के वचन में अनुसार अनुभव करते हैं, अपने चित्त में 'यथावत् धरते हैं । उस समय का विचार तो एक ओर रहा, परन्तु व्याकरण की रीति से जो समय है, उस समय में भी आठ बातें एक साथ कदापि न बनेंगी। क्योंकि एक ह्रस्व अक्षर का उच्चारण करने में एक समय बीतता है और दीर्घ उच्चारण में दो समय लगते हैं, तो जहां दस पांच अक्षर उत्तर देने में लगे, वहां एक ही समय कैसे रहेगा, किन्तु अनेक समय हो जायेंगे, तो आठ बातों का एक समय में कहना यह क्यों कर सिद्ध होगा ?
इसलिए हे पाठकगण ! इन बातों के कहने वाले को योगी मत जानो,
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