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सोने वाला मरे के समान होता है ।
हा महले परमात्मा की सुन्दर मूर्ति की ओर खुली प्रांखों समय तक एक टक देखने का अभ्यास करना चाहिए। आंखें नहीं साहिए । यदि आंखों में पानी ना जाए तो उसे आने देना चाहिए परन्तु आँख बन्द न करनी चाहियें। प्रारम्भ में जब आंखों में पानी आ जाए बन्द कर देना चाहिए । फिर दूसरे दिन देखना चाहिए। दिन बार प्रातः और संध्या को अभ्यास करना ठीक होगा । जब पन्द्रह मिनट तक देखने का अभ्यास हो जाए तब भगवान की मूर्ति के सामने से एकदम हटाकर प्रांखें बन्द करके अपने अन्तरंग में देखना चाहिए । तब तुम्हारे अन्तरंग में तुम्हें उस मूर्ति का प्रतिबिम्ब दिखलाई देगा। अपने अन्तरंग में प्रभु मूर्ति को देखने के अभ्यास को क्रमशः बढ़ाते जाना चाहिए । बाद में एकांत, पवित्र तथा डांस मच्छर रहित स्थान में बैठ कर अन्य सब विचारों को दूर कर प्रतिमाजी को हृदय में स्थापन कर उनकी अष्ट प्रकारी मानसिक पूजा करनी चाहिये ।
१ - प्रथम स्नान कराते समय यह भावना करनी चाहिए कि - हे प्रभो ! आप तो सदा पवित्र हैं। पानी जैसे बाहर की मैल को दूर करता है, तृषा को बुझाता है । तथा प्राग को शांत करता है वैसे ही आप हमारे कर्म मल को दूर करिये, विषय तृष्णा को 'बुझाइये तथा त्रिविध ताप को शांत करिये ।
२ - दूसरी चन्दन पूजा में नव अंगों पर तिलक करते हुए यह विचार करना चाहिए कि - हे प्रभो ! चन्दन जैसे काटने, घिसने और जलाने पर भी अपनी सुगंध और शीतलता को नहीं छोड़ता है वैसे ही दुनिया के सुखदुःखों के विविध प्रसंगों में मेरी आत्म जागृति बनी रहे - हे प्रभो ! मैं क्रोध बगैरह के ताप से जल रहा हूं। उससे शांत होने के लिए मैं सब कुछ सहन कर सकूं ऐसा बल मुझे प्राप्त हो ।
३- तीसरी पुष्प पूजा में विविध प्रकार के सुगन्धित पुष्प चढ़ाते समय इस प्रकार से विचार करना चाहिए कि - हे प्रभो ! पुष्प जैसे अपनी मुखरन्दरता मौर सुगन्ध के कारण देवों के मस्तक पर चढ़ाने के योग्य हुए हैं
भी प्राण.
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