Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 327
________________ श्रेष्ठ जन बिना मांगे सहयोग देते हैं । परिशिष्ट नं० २ ध्यान और समाधि १-ध्यान करने का क्रम ... ध्यान करने वाले मनुष्य की क्या योग्यता होनी चाहिये ? जिसका ध्यान करना हो वह ध्येय कैसा होना चाहिये ? तथा ध्यान करने से क्या फल होता है ये तीनों ध्याता, ध्येय और फल का स्वरूप अवश्य जानना चाहिये । क्योंकि सम्पूर्ण सामग्री जाने और पाये बिना कभी भी कार्य सिद्ध नहीं होता । २-ध्यान करने, वाले का लक्षण (१) प्राण संकट में आ पड़ें तो भी चरित्र को दोष न लगाने वाला, (२) दूसरे प्राणियों को अपने समान देखने वाला, (३) समिति-गुप्तिरूप अपने स्वरूप से पीछे न हटने वाला, (४) सर्दी-गरमी, धूप, वर्षा, वायु-आंधी आदि से खेद न पाने वाला, (५) अराधन करने वाले योग रूपी अमृत रसायन को पीने की चाह वाला, (६) राग-द्वषादि से पीड़ित न होने वाला, (७) क्रोध, मान, माया, लोभादि से दूषित न होने वाला, (८) सर्व कार्यों में निर्लेप और आत्मभाव में रमण करने वाला, (8) काम-भोगों से विरक्त, (१०) अपने शरीर पर भो निस्पृह, (११) संवेग में मग्न, (१२) शत्रु-मित्र, स्वर्ण-पत्थर, निन्दा-स्तुति आदि सबमें समभाव रखने वाला, (१३) चाहे राजा हो चाहे रंक, चाहे अमीर हो अथवा गरीब सबके लिये तुल्य कल्याण का इच्छुक, (१४) सर्व जीवों पर अनुकंपा करने वाला, (१५) हृदय से निर्भीक, (१६) चन्द्र के समान' शीतल आनन्ददायक, (१७) वायु के समान निसंग, (अप्रतिबद्ध)। ऐसी स्थिति वाला विचक्षण ध्याता ध्यान करने के योग्य है । ३-मन की स्थिति के भेद __योग का सर्व आधार मन पर है । मन की अवस्थाओं को जाने बिना और इसे उच्च स्थिति में लाये बिना योग में प्रवेश नहीं हो सकता। इसलिये यहां मन की स्थिति के भेद बतलाते हैं। मन के भेद-१-विक्षिप्त, २-यातायात, ३-श्लिष्ट, ४-सुलीन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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