Book Title: Swaroday Vignan
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 293
________________ क्षमा ही स्त्रियों तथा पुरुषों का भूषण है । लोगों ने इसका असल मर्म नहीं पाया है। जिन्होंने पाया उन्होंने छिपाया, क्योंकि देखो जिस समय में युञानयोगी योजना अर्थात् आत्मा में बाह्येवृत्तियों का त्याग कर एकाग्र होने की इच्छा करता है, उस समय आकाश में जो सर्व प्रकार के शब्द हो रहे हैं, वे पहिले तो मिले हुए गुंजार रूप से प्रतीत होते हैं । सो इसका अनुभव बताते हैं कि एकान्त में बैठ कर कानों में अंगुली देकर बुद्धिपूर्वक विचार करे तो गुंजार शब्द सुनाई देता है । उस गुंजार रूप प्रतीति में मन लगता चला जाता है, ज्यों-ज्यों एकाग्रता होती है, वैसेवैसे ही जुदे-जुदे शब्द की प्रतीति होती चली जाती है। अन्त में वह आनन्दसहित आत्मा में लय हो जाता है, क्योंकि इस चार गति के जीवों में हर्ष और शोक बना हुआ है, सो शोक से तो रोना, पीटना और हर्ष होने से गाना, बजाना, ये दोनों सदा होते हैं, कोई समय खाली नहीं होता। इसलिये इसको अनहद नाद बताया है। मैंने गुरु कृपा से यह भेद पाकर अनुभव करके वताया है। युक्त योगी का स्वरूप __ दूसरा युक्त योगी वह है, जो कि बाह्य वृत्ति से निवृत्त होकर प्रात्म वृत्ति में रमण करे इन्द्रियों के होने पर भी अतीन्द्रिय ज्ञान से भूत, भविष्यत् और वर्तमान का, चौदह राज अर्थात् चौदह भवन, जिसको अर्बी में चौदह तबक कहते हैं, इनका भाव न्यूनाधिक किंचित् भी न बखाने, उसका नाम युक्त योगी है। - यहां पर युक्त योगी और युंजानयोगी का तात्पर्य ऐसा है, कि युक्तयोगी तो जब तक शरीर का आयु कर्म है, तब तक जो हम युक्तयोगी की विधि लिख आये हैं, वह उसी के अनुसार शरीर छोड़ने के अन्त तक एक रस बना रहेगा। न्यूनाधिक कुछ भी न होगा। और युञ्जानयोगी जिस समय में योजना करे, उस समय में जिस वस्तु की योजना की हो, उसी वस्तु का सर्वज्ञ हो जाये, क्योंकि जिस समय पिण्डस्थ ध्यान की योजना करे, तो पिण्ड रूप चौदह राज की भावना को जैनमत में लोकनाल कहते हैं और वैष्णव मत में विराट स्वरूप कहते हैं। इस पिण्डस्थ ध्यान वाले को अनेक शक्तियां उत्पन्न हो जाती हैं। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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