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सरस्वती
हम सबको पवित्र करने वाली है ।
तका के श्वास गिनाए, तो आकाश तत्त्व के बिना जितने तत्त्व हैं वे सब आयु के घटाने वाले हो जायेंगे, क्योंकि नासिका के भीतर आकाश चलता है, बाकी शेष चार तत्त्व, आठ, बारह, सोलह, अंगुल तक चलते और कम होने से तत्त्वों की खबर नहीं पड़ती, तो फिर तत्त्वों का कथन "शिवजी से लेकर सब योगियों का वृथा हो जायेगा ।
इसलिए गुरु की चरण सेवा करके धारो तो तुम को मालूम पड़े, कि समाधि वालों को ही यथावत् तत्त्व मालूम पड़ते हैं, न कि नाक में हाथ लगाने से, या सूं - सां करने से । इसलिए जो तुम्हारा प्रश्न था कि समाधि वाले प्रायु बढ़ा लेते हैं, सो न बना ।
चौथी बात यह है कि जो हरिदास की पुस्तकों में लिखा है कि "हरिदास ने अंग्रेजों पर क्रोध करके पीछे राजा रणजीतसिंह के कहने से समाधि लगाई, फिर समाधि से निकल कर कुछ उनके हाथ न आया, तब क्रोध कर झाड़ी में रहकर शरीर को छोड़ कर परभव की निद्रा में सो गया । कुछ दिनों के बाद हरिदास जी के शिष्यों से उनके परमधाम होने का समाचार राजा रणजीतसिंह ने सुना, तव बहुत खेद चित्त में किया और शिष्यों को दम दिलासा दिया ।" अब पाठकों को विचार करना चाहिए कि हरिदास जी समाधि लगा कर छः महीने तक जमीन में गड़े रहते थे, तो फिर क्यों न उन्होंने काल को जीत कर अपने शरीर की आयु बढ़ाई ? नाहक में क्यों देह गंवाई ? उनकी समाधि की पुस्तक में १०० सौ वर्ष से कम आयु की ही अनुमान से गणना है भाई, समाधि वालों को शरीर से रहना असंभव हो समाई, जागृत 'समाधि कहने की बेला आई, इस रीति से जड़ समाधि का किंचित् भेद दिया दिखाई | चेतन समाधि का वर्णन
इस चेतन समाधि के दो भेद ऊपर लिखे हैं, उनमें प्रथम पिपीलिका भेद का वर्णन करते हैं । पिपीलिका अर्थात् चींटी जैसे सहारे से चढ़ती है, बिना सहारे के आकाश में नहीं चल सकती और विहंगम नाम पक्षी का है, सो पंख वाला जानवर बिना आश्रय के आकाश में उड़ता है । यह इन दोनों शब्दों का अर्थ हुआ । इनका तात्पर्यार्थ यह है कि अन्य दर्शन वाले आलम्बन के द्वारा जो
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