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आत्मा
से मुक्त हो जाता है तो वह परमात्मा बन जाता है ।
दही और आधार वह है कि जिसके श्राश्रय रहे । इसलिए बुद्धिमान् पूर्व पक्षपात को छोड़कर विचार करेगा, तो हमारे लिखने के अनुसार ही अंगीकार करेगा और जो बुद्धिमानों ने सोलह आधार बतलाये हैं, वे कोणाधार के अन्तर्गत हो जावेंगे, कुछ अनुपचरित में मिल जायेंगे ।
श्राधारों का स्वरूप वर्णन
उपादान आधार तो अपनी आत्मा है, क्योंकि सर्व गुरगादि आत्मा में है; इसलिए आत्मा आधार है, अथवा योगसिद्धि तिरोधान भाव से आत्मा में ही है, इस कारण से भी उपादान आधार प्रात्मा ही है । यह मनुष्य शरीर निमित्ताधार है, क्योंकि जब तक मनुष्य का शरीर न मिलेगा, तब तक कदापि योगसिद्धि न होगी तथा आत्मा के शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्ति भी न होगी; इसलिए शरीर निमित्ताधार है । इस शरीर रूप निमित्ताधार में बुद्धिमानों के लिखे १६ आधार भी अन्तर्गत हो जावेंगे। तीसरा मुख्याधार शरीर है और चौथे गौरणाधार में पाद, गुल्फ, जानु आदि शरीर के अवयव जानो, पांचवां द्रव्याधार – हम ऊपर बन्ध, आसन, मुद्रा और कुम्भकादिक जो कह आए हैं, उनको यथावत् करना वह द्रव्याधार है । जिस द्रव्य को करे उसका भाव प्रकट होकर लय हो जाना भाव आधार कहलाता है । सातवां स्वाधार आत्मा ही है, उसके अतिरिक्त और दूसरा नहीं । आठवां पराधार - गुरु और देव का आधार है । ६ वां बाह्यधार वह है कि जो ऊपर लिखी बातें हैं, उनको करके प्रत्यक्ष में हर एक मनुष्य को दिखाना । अन्तरंग की रुचि से जिसके वास्ते जो क्रिया कही है, उस समय करे, वह १० वां आभ्यन्तराधार है। देव के अभाव में, देव की प्रतिमा, चित्र, बिम्ब, आदि को देखकर शान्त-ध्यानारूढ़ जो आधार है वह उपचरिताधार है । इस आधार से अन्तरंग हृदय कमल में शान्तिरूप आकार वाले आत्मस्वरूप की प्राप्ति होती है; इसलिए इसको उपचरिताधार कहते हैं । मूलाधार से लेकर आज्ञा - पद्म तक देखना, और नाड़ी आदि को देखकर यथावत् उनमें स्थित होना; वह अनुपचरिताधार कहलाता है । इस रीति से सब आधारों का वर्णन किया ।
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