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व्यक्ति के अन्तर्मन को परखना चाहिए।
के वेवरी मैंने कराई है, और बिना खेचरी के वज्रोली करते हमने कितने ही मनुष्यों को देखा है। हां, बिना नौली के वज्रोली कदापि न होगी, क्योंकि नौलीकर्म जिसको सिद्ध होगा, वह पुरुष नल उठाकर बाहर की वायु को खींच सकता है, बिना नौली के कुम्भक वायु नहीं खिंचती, इसलिए जिसको नौली याद होगी उसको वज्रोली जब करेगा तब ही याद हो जायगी। इस रीति से किञ्चित् वज्रोली की प्रक्रिया दिखाई।
जोली, अम्रोली क्रियायें भी इस वज्रोली का ही भेद है ऐसा 'गोरक्ष-पद्धति आदि में लिखा है और इसका असल भेद प्रोघड़मत या अघोरियों का आचरण है परन्तु इसके करने से कुछ आत्मा की सिद्धि नहीं। हां, किसी कदर साधन करने से लोगों को चमत्कारादि सिद्धि दिखाने का कारण है । सो इसके लिखने के लिए चित्त तो नहीं चाहता । परन्तु मेरे गुरु ने मुझको बताने में किसी प्रकार का संकोच नहीं रखा । यदि वे कुछ संकोच रखते तो मैं भी संगति पाकर उनके (अघोरियों) के जाल में फंस जाता। सो उन गुरु की चरण-कृपा से और सब हाल जानने से उनके जाल में नहीं आया हूं, उनके घर के हाल को कहकर सर्वज्ञ मत पुख्ता बताता हूं। इस प्रकार लिखे हेतु से किञ्चित् दिखाते हैं कि लघुनीति का पीना और बड़ीनीति का खाना, अर्थात् पाखाना का खाना और पेशाब का पीना उसका नाम जोली है । अघोरी मतवाले ऐसा करते हैं ।
. अम्रोली . बड़ीनीति को और लघुनीति को मिलाकर कपड़े से छानना, और उसको गरम करके पीना, तथा उसके बोदर [फोकम] को शरीर पर मालिश करना उसका नाम अम्रोली है ।
इसे करने वाले लोग एक मन्त्र का जाप भी करते हैं, उस जाप से उनको सिद्धि प्राप्य होती है। इस काम के करने वाले इस संसार को यह तमाशा दिखाते हैं । क्रिया करने में सिद्धि की आशा रखते हैं, इन लोगों को आत्मा के स्वरूप का किञ्चित् भी बोध नहीं है ।
अब इस प्रपञ्च को छोड़कर प्रणायामादि दिखाते हैं, प्रथम मल-शुद्धि का उपाय कराते हैं, क्योंकि प्राणायाम से भी मलशुद्धि होती है।
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