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RDjदुष्ट, मू, कप को समझा पाना बहुत ही कठिन है। ईद मिलाते हैं, और उसकी महिमा सब कोई गाते हैं, परन्तु गाने वाले पन्थवाले इसको उड़ाते हैं, अपमे मनःकल्पित शब्द की रटना लगाते हैं, इस ही लिये वह अपना गुरु आदि से जुदा पन्थं चलाते हैं।
इसलिये प्रणव का ध्यान करना ठीक है। इस प्राणायाम के सिद्ध होने से शरीर नीरोग ही जाता है और शरीर नीरोग होने से बुद्धि आदि की प्रकृति स्वच्छ अर्थात् निर्मल रहती है । और प्राणायाम करने वाले की चेष्टा पर अन्य पुरुषों को ओजस्विता प्रतीत होती है । जिसका प्राणायाम अच्छी तरह हो गया है और चल रहा है, उस मनुष्य को दस्तादि इस प्रकार होगा कि जैसे बन्दूक से गोली निकलती है लेपादि न लगेगा और जिसका प्राणायाम बिगड़े अथवा कमी होय तो उसके पेट में से दस्त में बकरी की सी मेंगनी जाती है, और दुर्गन्धि भी हो जाती है। इसलिये जो प्राणायाम की रीति लिखी है, उस रीति से साधन करे तो यथावत् फल मिलेगा , योगाभ्यास में चित्त चलेगा। इस रीति से प्राणायाम का किंचित भेद दिखाया, जिन्होंने इसका अभ्यास किया उन्होंने ही इसका फल पाया और इसकी साधना से अध्यात्म पद पाया है ।
अब हम इस प्रणायाम के अनन्तर जो कहेंगे, वह सब ध्यान और समाधि के मतलब की बात होगी। यहां तक ध्यान और समाधि के पूर्व-कारण बताये गये, क्योंकि आसनों से लेकर प्राणाययाम-पर्यन्त जी बातें लिख आये हैं वे प्रात्म-धर्म नहीं, किन्तु आत्मधर्म-साधन के पूर्व-कारण हैं।
इन बातों को जो कोई अज्ञानी धर्म जानकर ग्रहण करेगा अथवा ऊपर लिखी बातों को धर्म जानेगा, उस पुरुष को आत्म स्वरूप न मिलेगा, जन्ममरण में ही वह पिलेगा, कर्म-बन्धन से न टलेगा। अब चक्रों का स्वरूप बतलाते है।
चक्रों का नाम १ मूलाधार, २ स्वाधिष्ठान, ३ मणिपूरक, ४ अनहद, ५ विशुद्ध, ६ आज्ञा, ७ सहस्रदल ।
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