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नीम से कभी मधु (शहद) नहीं टपक सकता है।
लोगों के चित्त में कदापि भ्रम न डालेंगे। वैसे ही देवता भी मत निकाय में जैसी-जैसी जाति में उत्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार अपनी जाति के अनुसार जिस मनुष्य का तीव्र पुण्य होगा, उसके पास वे आवेंगे, अपने कहने के अनुसार कर दिखावेंगे, जरा भी विलम्ब न लगावेंगे, काम कर तत्क्षण अदृश हो जावेंगे।
इसका विशेष वर्णन तो समाधि के भेद में समाधि-स्थित पुरुष के वर्णन में करेंगे।
___ मानसी पूजा की रीति पुरुष मानसी पूजा के योग्य तब होता है, जब कि वह आधार और भावना को यथावत् धारण करे। इसलिए हमको इस जगह आधार और भावना अवश्य ही लिखनी पड़ी है। क्योंकि जो पुरुष धारणा धारण करने के योग्य नहीं, वह मानसी पूजा के भी योग्य नहीं हो सकता । इसलिए मानसी पूजा के अन्तर्गत 'हठ-प्रदीपिका' के अन्दर जो १६ (सोलह) अाधार लिखे हैं उनको बतलाते हैं:-१ अंगुष्ठ, २ गुल्फ, ३ जानु, ४ उरू, ५ सीवनी, ६ लिंग, ७ नाभि, ८ हृदय, ६ ग्रीवा, १० कंठदेश, ११ लम्बिका, १२ नासिका, १३ भ्र मध्य , १४ ललाट, १५ मूर्धा, १६ ब्रह्मरन्ध्र । इतने नाम गिनाकर इस ग्रन्थ वाले ने गोरक्ष सिद्धान्त का नाम लिया है । और 'गोरक्ष पद्धति' में मूल में तो ये नाम खुले लिखे नहीं है, उसकी भाषा करने वालों ने मूल श्लोक को लिखकर अन्य ग्रन्थों से वे नाम लिखे हैं । सो मुझे अनुमान से मालुम होता है कि, उस भाषा करने वाले ने 'गोरक्षसिद्धान्तादि' अथवा किसी गुरु से जानकर वे नाम लिखे होंगे । वह मूल श्लोक इस प्रकार है:
"षट्चक्रं षोडशाधारं, द्विलक्ष्यं व्योमपंचकम् । - स्वदेहे येन जानन्ति, कथं सिध्यन्ति योगिनः ॥१३॥"
भाषा-छः चक्र और सोलह.आधार, दो लक्ष्य और पांच आकाश इन चीजों को जो योगी स्व-देह में नहीं जानता, उसको सिद्धि क्यों कर होगी? अर्थात् बिना जानने वाले को योगसिद्धि कदापि न होगी।
अब जो भाषा बनाने वाले ने सोलह तरह के आधार लिखे हैं वे दिखाते
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