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२२६] मेघावी साधक सत्य बलसे मृत्युके प्रवाह को भी
जाता है।
मन हो जाती है, क्योंकि जो जिस भाषा में अक्षर बांचना जानेगा, उस भाषा का ग्रन्थ कैसा ही क्लिष्ट (कठिन) क्यों न हो उसके बांचने की और समझने की शक्ति हो जायगी । कदाचित् प्रक्षर न पढ़ सके तो दूसरे से श्रवरण करके कर्ता के अभिप्राय को ठीक-ठीक समझ सकेगा और कुछ दिन पर्यन्त निरन्तर इसका ध्यान करे तो उसके सामने सरस्वती नृत्य करती है और कविता द्विता से करता है ।
२ स्वाधिष्ठान चक्र का वर्णन
इस स्वाधिष्ठान चक्र की लिंग के मूल में छ: पांखड़ी हैं । उनके ऊपर ये छः अक्षर हैं; – बं, भं, मं, यं रं लं । इन्हीं अक्षरों से पांखड़ी शोभायमान
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है, और इसका रक्त वर्ण है जो कुछ पीला सा झलकता है । शरत्पूर्णिमा के सर्वकला पूर्ण चन्द्रमा की तरह सफेद वर्ग का चमकीला (बं) बीज सहित जो कोई इस चक्र का ध्यान करे, उसको कविता करने की शक्ति होगी, और सुषुम्ना नाड़ी चलाने की शक्ति को प्राप्त होकर नाद को श्रवण करता हु आनन्द को प्राप्त होगा ।
३ मणिपूरक चक्र का वर्णन
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अक्षर
यह पद्म नाभि की जड़ में है, सुवर्ण के सदृश दस पांखड़ी करके संयुक्त और दसैँ पांखड़ियों के ऊपर "डं, ढं णं, तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं, ये दस । इन अक्षरों से संयुक्त, शोभायमान, देखने वाले को आनन्द देने वाला, सूर्य के समान वह्नि बीज है, और उसके आगे स्वस्तिक ( साथिया ) है, इस अग्नि बीज का सूर्य के समान प्रकाश है । इस मरिणपूरक चक्र का वीजसहित जो कोई पुरुष ध्यान करता है, उसको सुवर्ण आदि सिद्धि करने की शक्ति हो जाती है, और देवताओं के दर्शन होना सुलभ हो जाता है ।
४ हृदय कमल - अनहद चक्र का वर्णन
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यह अनहद नामक कमल बारह पाखंड़ी का है, और बारह अक्षर करके संयुक्त है । बे अक्षर ये हैं- कं खं गं घं, ङ, चं, छं, जं, झं, ञ, 1 टं, ठं । इस पद्म का लाल वर्ण है, और इसका वायु बीज है । इसकी पांखड़ी ( कली) के बीच में बिजली के समान चमकती हुई त्रिकोणी एक शक्ति है,
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