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सत्य-साधक दुखों से घिरा रहकर भी घबराता नहीं।
७ मूछो कुम्भक इस मूर्छा शब्द का अर्थ बेहोश, अर्थात् मुद की भांति हो जाना है, और कुछ सुरत अर्थात् चेतना नहीं रहती, जिसको लोक में गश भी कहते हैं । इसकी विधि यह है कि गले में जो नसों का जाल है, उस जाल की नाड़ी, हंसली के ऊपर और गले की मणिया के नीचे अर्थात् दोनों के बीच में है, उसके दबाने से मूर्छा आ जाती है इसका नाम मूर्छा-कुम्भक है। इसमें पूरक रेचक करने का कोई काम नहीं। यह कुम्भक जड़ समाधि में काम आती है । सो इसका असली भेद तो गुरु नस दबाकर बतावे तब मालूम होगा। इस कुम्भक से कुछ सिद्धि नहीं। ...
८ प्लावनी कुम्भक प्लावनी का अर्थ यह है कि जैसे जल के ऊपर लोग तैरते हैं, वैसे ही वायु शरीर में रोककर ऐसा कुम्भक करे, कि जिससे शरीर हलका होकर आपसे आप ऊपर को उठने लगे और किसी तरह का परिश्रम न पड़े। इस कुम्भक के करने से आकाशादि में चलने की शक्ति होती है । और इसी कुम्भक से केले की पालकी में बैठकर श्री स्वामी शंकराचार्य कुमारपाल राजा के पास गये थे, और कुमारपाल राजा को जैनमत से भ्रष्ट करना विचारा था। फिर श्री हेमाचन्द्राचार्य ने इसी कुम्भक से अधर होकर व्याख्यान उच्चारा, कुमारपाल' को सम्भाला, शंकराचार्य को वहां से निवारा।
· इस रीति से आठ कुंभकों का वर्णन कर दिया है। चन्द्रभेदादि नवमी कुम्भक भी हो गई सही, किंचित् गुरु कृपा से हमने अनुभव में बात लही। परन्तु 'हठ-प्रदीपिका' में पिछले तीनों कुम्भकों की जो रीति है, वह भी दिखाते हैं, कि जो पूरक वेग से करे तो भ्रमर की तरह नाद होता है, इस लिए पूरक वेग से करे, जिसमें भ्रमर की तरह नाद हो उस रीति से नाद करता हुआ.पूरक करे । फिर भ्रमरी का सा नाद हो, जिसमें मन्द-मन्द रीति से रेचन करे, वह रेचन पूरक की विवेषता है। और पूरक पीछे रेचक. तो भ्रमरी की तरह स्वभाव सिद्ध है इस वास्ते विशेष नहीं लिखा है।
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