________________
सत्यसे संयम की विराधना होती हो तो मत बोलो। [१८१ । २० पल अर्थात् ८ आठ मिनट नाभि में जिसकी स्थिति है।
५-आकाश तत्त्व का स्वरूप आकाश तत्त्व रंग में काला, अथवा नाना प्रकार का, नासिका के भीतर ही चलने वाला, स्वाद में कटु, शून्याकार वाला, १० पल' अथवा ४ मिनट मस्तक में अथवा सम्पूर्ण देह में स्थित है । वह आकाश तत्त्व नाम से पहिचाना जाता है । इस प्रकार तत्त्वों का वर्ण तथा आकार आदि कहा है। अब जो कुछ ऊपर लिख आये हैं कि मुझे जैन रीति से जो तत्त्व गुरु ने कहे हैं कुछ उनका स्वरूप कहते हैं।
जैन रीति से तत्त्वों का अनुसन्धान अरिहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु ये पंच तत्त्व जानने चाहिये । और क्रम से निम्नलिखित वर्णादि भी जानने चाहिये-जैसे शुक्ल, लाल, पीला, हरा अथवा नीला, काला अथवा विचित्र । सोलह अंगुल', चार अंगुल, बारह अंगुल, आठ अंगुल, कुछ नहीं। कषायला, अथवा अत्यन्त मीठा, तीखा, मीठा, खट्टा, कडुवा।
१-अरिहंत तत्त्व अब इन उक्त तत्त्वों तथा इनके वर्णभेदादि पर विचार दिखलाते है । पहले अरिहंत को श्वेत वर्ण क्यों कहा है.? वह इसलिये कि उनमें किसी प्रकार का मल--कर्मरूप मैल-नहीं रहा । और बारह अथवा सोलह अंगुल इस वास्ते कि आठ गुण प्रातिहार्यादि और चार मूल अतिशय इस प्रकार बारह गुण हैं इसी लिये बारह अंगुल' और चार कर्म के क्षय होने से चार गुण, इसी रीति से सोलह अंगुल समझना चाहिये।
इसका स्वाद कषायला इसलिये कहा है कि सम्यक्त्व-रहित मिथ्या दृष्टि जीवों को उनके वचन रूप जल में रुचि नहीं होती, इसलिए उन्हें उनका वचन कषायला लगता है और जो सम्यक्त्व करके सहित हैं, उनको शब्दरूपा जल अत्यन्त मीठा मालूम होता है, इसलिये अज्ञान दशा से लोग जल का स्वाद कषायला कहते हैं, परन्तु है असल में मीठा; इसी वास्ते नैयायिकों ने जल को मीठा कहा है । हरीतकी अर्थात् हरड़ अथवा आम की सेकी हुई
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org