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ऐसा सत्य बोलो जिससे किसी का अनिष्ट न हो।
[१७१ २-गोधुक प्रासन ऊकडू (पांव के बल पर) बैठकर एडीयां ऊंची रखे और पांवों के पंजों के बल पर अपना समस्त शरीर का भार डाल कर, जैसे गवाला लोग गाय को दोहने के अवसर पर बैठते हैं, वैसा बैठने को गोधुक् आसन' या गोदोहन आसन कहते हैं । इसी आसन से शासनपति भगवान् श्री वर्धमान स्वामी ने सालवृक्ष के नीचे केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त किया था।
३-गोमुख प्रासन बाई अर्थात् डाबी तरफ कटि (कमर) के नीचे दक्षिण अर्थात् जीमने पांव की गुल्म अर्थात् एड़ी धरे और जीमनी कटि की तरफ बांये पांव की एड़ी को धरकर बैठ जाय, और दोनों घुटनों को ऊपर नीचे कर ले, जैसे गौ का मुख अर्थात् दोनों होठ ऊपर नीचे होते हैं, इस तरह दोनों घुटने करे। इस आसन को कानफटे साधुओं में जो गोरखनाथ हो गये हैं उन्होंने विशेषकर किया है, इसी लिये इसको गोरक्ष-आसन भी कहते है।
४-वीरासन जैसे वीर अर्थात् शूर-वीर मनुष्य युद्ध में धनुष बाण को खींचते हैं, उस रीति से जो खड़ा होना उसी का नाम वीरासन है । सो यह वीरासन कई तरह से होता है, इसीलिये नाम मात्र लिखा है, क्योंकि आसनों की प्रक्रिया तो गुरु के पास से अपनी दृष्टि से देखे और गुरु करके दिखावे तब ही तथावत् मालुम होती है।
५-कूर्मासन दोनों पगों (पांव) की एड़ी से गुदा को रोक करके सावधान स्थित हो जाने को कूर्मासन कहते हैं।
६-कुक्कुटासन __ अव कुक्कुटासन कहते हैं-बाएं पैर के तलवे दाहिनी (जीमनी) जंघा के ऊपर रखे, अर्थात् पद्मासन लगाकर फिर दोनों हाथों को ऊरु अर्थात् जंघा के बीच में हाथ घुसेड़कर जमीन पर टेके, फिर हाथों पर जोर देकर
और प्रासन करता हुआ ऊपर को उठे और जमीन से अधर (आश्रय-रहित) हाथों के ऊपर खड़ा रहे उसी का नाम कुक्कुटासन है।
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