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- पाप न करना ही परम मंगल है।
और क्लेश हो-२१८
जिस समय श्वास जल्दी-जल्दी पलटे अर्थात्. थोड़ी देर चन्द्र नाड़ी में और
(१) नौकरी की उमेदवारी के लिए जाना, (२) इण्टरव्यु के लिए जाना, (३) मुकदमे में वादी, प्रतिवादी अथवा साक्षी के लिये जाना, (४) अपने मालिक, स्वामी, आफिसर, बड़े, बुजुर्ग अथवा गुरु की मुलाकात के लिए जाना।
(घ) जिस व्यक्ति ने सफलता प्राप्त करनी हो-अथवा भाग्य का उदय करना हो उसे निम्नलिखित कुछ नियमों का पालन करना चाहिए । इन नियमों के अनुसार चलने से अशुभ योग अपने आप नष्ट हो जाते हैं:-(१)नित्य सूर्योदय से आधा घण्टा पहले जागना चाहिए । (२) सुबह उठते समय (बिछौने में बैठे बैठे) आंख खोलते ही जो स्वर चलता हो उसी तरफ का पग बिछोने से उतरते हुए पहले धरती पर रखना चाहिए। पर उतरते समय श्वास लेते समय पग धरती पर रखना आवश्यक है। खाली स्वर से लाभ के बदले हानि होना संभव है । यदि दाहिना (सूर्य) स्वर चलता हो तो दायां (जीमना) पग धरती पर रखना चाहिए। यदि बायां चन्द्र स्वर चलता हो तो बायां (डाबा) पग धरती पर रखना चाहिए । चन्द्र स्वर में सम अर्थात् दो, चार आदि कदम आगे बढ़ना चाहिए । तथा सूर्य स्वर में विषम अर्थात् १, ३, ५, आदि कदम आगे बढ़ना चाहिये।
(ङ) स्वरोदय के प्रयोग से अग्नि शांत हो जाती है:-सबको आश्चर्य होगा कि स्वर की मदद से बड़ी-बड़ी लगी हुई आग बुझाई जा सकती है। स्वर की मदद से आग बुझाने की विधि इस प्रकार स्वर शास्त्र में कही है
जिस जगह आग लगी हो, जिस तरफ से पवन हवा की गति से आग ज़ार पकड़ती हो उस तरफ पानी का पात्र लेकर खड़े रहें । तदनन्तर जिस नासिका से (नाड़ी से) श्वास चलता हो उस नाड़ी से श्वास अन्दर खींचते-खीचते उसी नाड़ी से थोड़ा जल भी खींचें । तत्पश्चात् उस पात्र में से ७ रत्ती भर (एक चम्मच) पानी लेकर आग पर छोडें, थोड़ी देर में आग आगे बढ़ना बन्द होकर बन्द हो जायेगी अर्थात् बुझ जाएगी।
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