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मन में कपट रखकर मत बोलो। (३) जिस मनुष्य को तीन रात दिन बराबर सूर्य स्वर चलता रहे बीच
दिया है।
पौष्ण काल में चन्द्र नाड़ी में पवन ... पोष्ण काल में यदि उपर्युक्त दिनों में चन्द्र नाड़ी में पवन चले तो उतने समय के हिसाब से मृत्यु के बदले-व्याधि, मित्र विनाश, महाभय, परदेश गमन, धन विनाश, पुत्र विनाश तथा दुर्भिक्ष आदि उत्पन्न हों।
इस प्रकार शरीर में रहे हुए चन्द्र सूर्य सम्बन्धी प्रत्येक वायु का अभ्यास कर आयुष्य का निर्णय जानना चाहिये । कदाचित व्याधि अथवा रोग होने से भी शरीर सम्बन्धी वायु का विपर्यास हो जाता है इसलिए कालज्ञान निश्चय करने के लिए आयुष्य जानने के लिए बाह्य कारणों को भी कहते हैं। ...
रोग के कारण से कई बार एक नाड़ी अधिक समय चलती रहती है दूसरी नाड़ी चलती नहीं। ऐसा होने से आयुष्य निर्णय करने के लिए दूसरे लक्षण बतलाते हैं । यह भी प्रयोग के साथ विचार करने से काल का निश्चित निर्णय करने में सहयोगी हो सकते हैं। ___ नेत्र, श्रोत (कान) तथा मस्तक के भेद से तीन प्रकार के लक्षणों को बतलाने वाले इस बाह्य काल को सूर्य के प्रालम्बन से देखें । तथा इस तीन प्रकार से अन्य काल के भेद को अपनी इच्छानुसार देखें।
३–नेत्र लक्षण द्वारा कालज्ञान बायें (डाबे) चक्षु में सोलह पंखड़ियों वाला चन्द्र सम्बन्धी कमल है । ऐसा सोचें तथा दाहिने (जीमने) नेत्र में बारह पंखड़ियों वाला सूर्य सम्बन्धी कमल है ऐसा सोचें। ___ नोट ४-पौष्ण काल का लक्षण-जन्म नक्षत्र में चन्द्रमा हो और अपनी राशी से सातवीं राशी में सूर्य हो तथा जितनी चन्द्रमा ने जन्म राशी भोगो हो उतनी ही सूर्य ने सातवीं राशी भोगी हो तब पौष्ण नाम का काल होता है । यह पौष्ण काल मृत्यु निर्णय करने में कारणभूत है । अर्थात् इस काल में म त्यु का निर्णय किया जा सकता है।
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