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अविनयी दुःख का और विनयी सुख का भागी होता है। [१२३
अर्थ-(७) यदि चन्द्र, सूर्य और सुखमना ये तीनों ही स्वर ने चलें और मुख से श्वास लेना पड़े तो चार घड़ी में मृत्यु हो-३५७ मैथुन करते देखे, सर्द-गरम, खुरदरा-मुलायम स्पर्श को जान न सके । इन सब लक्षणों में से कोई भी एक लक्षण मनुष्य को दिखलाई दे तो उस मनुष्य की मृत्यु एक महीने में हो। इसमें संशय नहीं ।
१६-दस दिन से एक दिन तक मृत्यु (१) दस दिनों में मृत्यु-हकार अक्षर बोलते हुए यदि श्वास ठण्डा हो, फुत्कार करते हुए श्वास बाहर निकालते हुए गरम हो, स्मरण (याद) शक्ति बिल्कुल न रहे, चलने-फिरने की गति क्षीण हो जाए तथा शरीर के पांचों अंग ठण्डे हो जावें तो दस दिनों में मृत्यु हो।
(२) सप्ताह (सात दिनों) के अन्त में मृत्यु-शरीर प्राधा गरम और आधा ठण्डा हो जावे तथा बिना कारण के अकस्मात् शरीर में ज्वाला जला करे तो सात दिनों में मृत्यु हो । ___ (३) छः दिनों के अन्त में मृत्यु–यदि स्नान करने के बाद तुरन्त हृदय
और चरण सूख जावे तो छटे दिन मृत्यु हो । ___(४) तीसरे दिन मृत्यु-कड़कड़ करते दांत घिसें, शरीर में से मुर्दे के समान महा दुर्गन्ध निकला करे तथा शरीर के वर्ण में विकृति हो तो तीसरे दिन मृत्यु हो।
(५) दूसरे दिन मृत्यु-यदि मनुष्य अपनी नाक, जीभ, ग्रह, नक्षत्र, तारे, निर्मलं दिशा तथा आकाश में रहे हुए सप्त ऋषियों के तारों को न देख सके तो उसकी दो दिन में मृत्यु हो।
. २०-छाया पुरुष द्वारा मृत्यु आदि ज्ञान सुबह, सायं अथवा प्रकाश वाली रात को प्रकाश में खड़े रहकर अपने हाथ लम्बे (काउसग्ग मुद्रा के समान) रखकर अपने शरीर की छाया के सामने खुली आंखों से कुछ समय तक देखा करे। तत्पश्चात धीरे-धीरे आंखों को छाया पर से हटाकर खुली आंखों से ऊंचे या सामने आकाश में देखें, तो पुरुष के समान सफेद आकृति आकाश में रही हुई दिखलाई देगी। यदि इस आकृति का सिर
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