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सदा प्रप्रमत्त भाव से साधना में तल्लीन रहो ।
अलम्बुषा धार ॥
इंगला पिंगला सुखमना, गांधारी हस्तिजिह्वा पंचमी सुधी, षष्टि पूषा सप्तम जान यशस्विनी, मन कुहू संखनी नारियां, दस के अर्थ – (१) इंगला, (२) पिंगला, (३) हस्तिजिह्वा, (६) पूषा, (७) यशस्विनी, (८) अलम्बुषा ( ९ ) कुहू, (१०) शंखिनी – ये नाम उपर्युक्त प्रधान दस नाड़ियों के हैं—४३६-४३७
नाम विचार ॥ ४३७ ॥
सुखमना, (४) गांधारी, (५)
कंहवाय । बताय ।। ४३६ ॥
मुख्य नाड़ियों के स्थान
वाम भाग से इंगला, पिंगला दक्षिण धार ।
नासा पुट में संचरत, सुखमन मध्य निहार ॥ ४३८ ॥ वाम चक्षु गंधारिका, दक्षिण नयन मंभार । हस्तिजिह्वा पूषा सुधी, दक्षिण कान प्रचार ॥ ४३६ ॥ वामे कान यशस्विनी, अलम्बुषा मुख थान ।
कुहू लिंग अस्थान है, गुदा शंखिणी जान ।। ४४० ॥ अर्थ - मेरुदण्ड से वाम (बायें) भाग में इंगला, दक्षिण (दाहिने) भाग में पिंगला, नासापुट (मध्य देश) में सुखमना, वाम नेत्र में गांधरी, दक्षिण नेत्र में हस्तिजिह्वा ( हस्तिनी), बायें कान में यशस्विनी, दायें कान में पूषा, मुख में अलम्बुषा, लिंग में कुहू ( किरकल) तथा गुदा में संखिनी का वास स्थान है । इस प्रकार शरीर के दस द्वारों में दस नाड़ियां है। योगाभ्यासियों के लिये इनका ज्ञान करना परमावश्यक है - ४३८-४३६-४४०
दिग धमनी ये काय में, प्रारणाश्रित नित जान ।
वायु प्राश्रित जो रही, ते दस कहूं बखान ॥। ४४१ ।। अर्थ – इन उपर्युक्त दस नाड़ियों में किस-किस वायु का वास है अब उस इस प्रकार की वायु का वर्णन करते हैं - ४४१
नाड़ियों में वायु
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प्राण अपान समान जे, उदान व्यान विचार |
७८ – इनका स्वरूप देखें पद्य नं० ६२-६३-६४ के अर्थ में ।
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