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आत्मा परलोक में अकेला ही गमनागमन करता हैं।
[१४ चिदानन्द नित कीजिए, समरण श्वासोश्वास ।
वृथा अमूलक जात है, श्वास खबर नहीं तास ॥४०३॥ - अर्थ-इसलिए हे चिदानन्द ! सदा श्वासोश्वास का ख्याल रख । इन अमूल्य श्वासोश्वास रूप प्रायु को व्यर्थ में मत खो। यह मनुष्य जन्म बारबार नहीं मिलेगा, इसलिए इस जीवन का एक क्षण भी प्रमाद में मत जाने दे। न जाने ये श्वासोश्वास कब समाप्त हो जाएंगे और तेरी मृत्यु हो जावेगी-४०३
श्वासोश्वास की गति एक महूर्त मांहि नर, सुर में श्वास विचार।। तिहुतर अधिका सात सौ, चालत तीन हजार ॥४०४॥ एक दिवस में एक लख, सहस त्रयोदश धार । एक शत नव्वे जात है, श्वासोश्वास विचार ॥४०५।। सात शत सहस पचानवे भाख तेत्रीस लाख । एक मास में श्वास इम, ऐसी प्रवचन साख ॥४०६॥ . चउ शत अडताली सहस, सप्त लक्ष सुर माहिं। चार क्रोड़ इक बरस में, चालत संशय नांहि ॥४०७॥ चार अबज क्रोडी सप्त, फुनि अड़ताली लाख ।
स्वास सहस चाली सुधी, सौ बरसों में भाख ॥४०८॥ अर्थ-एक महूर्त (४८ मिनटों) में स्वस्थ मनुष्य ३७७३ श्वासोश्वास लेता है। एक दिन और रात (चौबीस घंटों) में स्वस्थ मनुष्य ११३१६० श्वासोश्वास लेता है। एक मास में (तीस दिन रात ) में स्वस्थ मनुष्य ३३६५७०० श्वासोश्वास लेता है। एक वर्ष (बारह मास) में स्वस्थ मनुष्या ४०७४८४०० श्वासोश्वास लेता है। सौ वर्षों में स्वस्थ मनुष्य
सकता है। अत: शुद्ध स्वरूप प्राप्त करने के लिए अजपा जाप "अहम्' का करना सर्वश्रेष्ठ है । अहम् शब्द अरिहत का पर्यायवाची है। जिन्होंने स्वयं योगातीत अवस्था प्राप्त कर सर्व कर्म बन्धनों से बन्धन मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त किया है योगाभ्यासी के लिए इनके सिवाय और कोई उत्तम आदर्श नहीं है । सोऽहं शब्द में भी अहम् का लक्ष्य ही होना चाहिए।
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