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निष्काम प्राणी मृत्यु से नहीं डरता, शाश्वत सुख प्राप्त करता है। [1] चारों गतियों के नाश से मोक्ष रूप पांचवीं गति प्राप्त होती है । पांचवी मावि (मोक्ष) पाये बिना जीव को तीनों लोकों में शाश्वत सुख मिलना सम्भव नदी है । यही निश्चित सत्य है-३६३-३६४
समाधि का स्वरूप इम विचार हिरदय करत, ज्ञान ध्यान रस लीन ।
निरविकल्प रस अनुभवी, विकलता होय छीन ।।३६५॥ अर्थ- इस प्रकार जो व्यक्ति मन में विचार करके ज्ञान और ध्यान के रस में लीन रहते हुए निर्विकल्प रस का अनुभव करता है वह सब प्रकार के विकल्पों से रहित हो जाता हैं-३६५
निरविकल्प उपयोग में, होय समाधि रूप।
अचल ज्योति झलके तिहां, पावे दरस अनूप ॥३६६॥ अर्थ-जब निर्विकल्प उपयोग में समाधि की प्राप्ति होती है । तब जिस आत्मा की उपमा के लिए जगत में एक भी पदार्थ नहीं है उसकी अनन्त ज्योति का प्राणी अपने में प्रकाश कर उसके दर्शन पाता है-३६६
देख दरस अद्भुत महां, काल त्रास मिट जाय ।
ज्ञान योग उत्तम दशा, सद्गुरु दिए बताय ।।३६७।। अर्थ-उस अद्भुत-अनूपम ज्योति का दर्शन पाने से मृत्यु का महात्रास मिट जाता है ज्ञान योग की ऐसी उत्तम दशा सद्गुरु ने बतलाई है-३९७
ज्ञानालम्ब दृग ग्रही, निरालम्बता भाव ।
चिदानन्द नित आदरो, एहिज मोक्ष उपाव ।३६८॥ अर्थ-बाकी के सब प्रकार के आलम्बनों को छोड़कर ज्ञान का सदा आलम्बन करते हुए वैराग्य रस का अमृतपान करना ही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र उपाय है. अतः आत्मा को निज स्वभाव में रमण करने के उपायों को सदा ग्रहण करो-३९८
थोड़े से में जानजो; कारज रूप विचार। __ कहत सुनत श्रुतज्ञान का, कबहु न आवे पार ॥३६६।। अर्थ-थोड़े में ही अपने कर्तव्य को समझ कर उसका अपने कल्याण के
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