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विशुद्ध भाव ही जीवन की सुगन्ध है ।
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अर्थ – यदि बादलों के बिना ही बिजली दिखाई दे तथा उसके घर पर कौए आकर कोलाहल करें तो समझ लेना चाहिए कि मृत्यु समीप है - ३६७ अधिक चन्द्र सुख भाल जस, चलत काय में जान । चन्द सूर दोऊ गया, मरण समो पहिचान ॥ ३६८ ॥
( प ) आयुर्वेद के मतानुसार काल ज्ञान
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जब देखे निज वरण कर, हीन आपको आप |
जान आयु की हीनता, निश्चय तन संताप ॥१॥
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अर्थ – जिस समय अपने शरीर के वर्ण को हीन (क्षीण) होता देखे तो समझना चाहिये कि आयु अल्प है ।
जीवन छंडे निज प्रकृति, तोलों दीर्घ आऊ ।
प्रकृति विकार भजै जबै, तब ही श्रायु घाऊ ॥२॥
अर्थ- जब तक जीव का स्वभाव (प्रकृति) नहीं बदलता तब तक उसकी आयु दीर्घ समझना चाहिये । जब उसकी प्रकृति में विकार आ जाय तो समझ लेना चाहिये कि इसकी अल्प आयु है ।
हृदय नाभि अरु नासिका, पाणि चरण युग सीत । सिर शीतल याको रहे, ता को मृत्यु की भीत || ३ ||
अर्थ – हृदय, नाभि, नाक, दोनों हाथ तथा दोनों पग एवं सिर जिसके ठण्डे
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हो जावें उसकी मृत्यु समीप समझनी चाहिए ।
उष्ण होय उसास जसु शीतल होय निसास ।
महातीव्र तनु ताप होय, ताको यमपुर वास || ४ ||
अर्थ — जिसका श्वास गरम हो तथा निश्वास ठण्डा हो एवं शरीर में बहुत जोरों का ज्वर हो तो उसकी मृत्यु होने वाली है। ऐसा समझना चाहिये ।
अंग कम्प गति भंग होय, वर्ण परावर्त होय । . गन्ध स्वाद जाने नहीं, ताकी मृत्यु ज होय ॥५॥
अर्थ - जिसका सिर कांपे, गति (चाल) लड़खड़ाये, वर्ण परिवर्तन हो जाय, गन्ध तथा स्वाद का ज्ञान करने की शक्ति न रहे अर्थात् इन्द्रियां अपने-अपने
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