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________________ विशुद्ध भाव ही जीवन की सुगन्ध है । [१३५ अर्थ – यदि बादलों के बिना ही बिजली दिखाई दे तथा उसके घर पर कौए आकर कोलाहल करें तो समझ लेना चाहिए कि मृत्यु समीप है - ३६७ अधिक चन्द्र सुख भाल जस, चलत काय में जान । चन्द सूर दोऊ गया, मरण समो पहिचान ॥ ३६८ ॥ ( प ) आयुर्वेद के मतानुसार काल ज्ञान - जब देखे निज वरण कर, हीन आपको आप | जान आयु की हीनता, निश्चय तन संताप ॥१॥ - अर्थ – जिस समय अपने शरीर के वर्ण को हीन (क्षीण) होता देखे तो समझना चाहिये कि आयु अल्प है । जीवन छंडे निज प्रकृति, तोलों दीर्घ आऊ । प्रकृति विकार भजै जबै, तब ही श्रायु घाऊ ॥२॥ अर्थ- जब तक जीव का स्वभाव (प्रकृति) नहीं बदलता तब तक उसकी आयु दीर्घ समझना चाहिये । जब उसकी प्रकृति में विकार आ जाय तो समझ लेना चाहिये कि इसकी अल्प आयु है । हृदय नाभि अरु नासिका, पाणि चरण युग सीत । सिर शीतल याको रहे, ता को मृत्यु की भीत || ३ || अर्थ – हृदय, नाभि, नाक, दोनों हाथ तथा दोनों पग एवं सिर जिसके ठण्डे - हो जावें उसकी मृत्यु समीप समझनी चाहिए । उष्ण होय उसास जसु शीतल होय निसास । महातीव्र तनु ताप होय, ताको यमपुर वास || ४ || अर्थ — जिसका श्वास गरम हो तथा निश्वास ठण्डा हो एवं शरीर में बहुत जोरों का ज्वर हो तो उसकी मृत्यु होने वाली है। ऐसा समझना चाहिये । अंग कम्प गति भंग होय, वर्ण परावर्त होय । . गन्ध स्वाद जाने नहीं, ताकी मृत्यु ज होय ॥५॥ अर्थ - जिसका सिर कांपे, गति (चाल) लड़खड़ाये, वर्ण परिवर्तन हो जाय, गन्ध तथा स्वाद का ज्ञान करने की शक्ति न रहे अर्थात् इन्द्रियां अपने-अपने Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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