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न अपनी अवहेलना करो न दूसरों की।
अरुंधति ध्रुव बालिका, मातृ मंडले जोय ।
ये चारों न लखी सके, आयु हीन नर सोय ॥ ३६३ ॥ अर्थ-(१३) अरुन्धती, घ्र व, बालिका, तथा मातृका मंडल ये चारों जिस पुरुष को न दीख पड़ें, उसकी आयु अत्यल्प जाननी चाहिए-३६३ न दिखलाई दें तो पांच वर्ष, पार्श्व (पड़खे) न दिखलाई दें तो तीन वर्ष, यदि नाक न दिखलाई दे तो एक वर्ष में मृत्यु हो । यदि सिर अथवा चिबुक (ठोड़ी) न दिखलाई दे तो छ: मास, यदि ग्रीवा (गर्दन) दिखलाई न दे तो एक मास, यदि आंखें न दिखलाई दें तो ग्यारह दिन, हृदय में छिद्र दिखलाई दे तो सात दिन में, यदि दो छाया दिखलाई दें तो तत्काल मृत्यु हो।
२६-विद्या द्वारा काल ज्ञान (१) पहले चोटी में "स्वा" शब्द; मस्तक में "ॐ" शब्द ; नेत्र में "क्षि" शब्द; हृदय में "पं" शब्द ; नाभि कमल में "हा" शब्द स्थापन करें।
(२) विद्या-ॐ जुसः ॐ मृत्युंजयाय ॐ वज्रपाणिने शूलपाणिने हर हर दह दह स्वरूपं दर्शय दर्शय हुं फट् ।
(३) विधि–उपर्युक्त विद्या से एक सौ आठ (१०८) बार दोनों नेत्र तथा अपनी छाया को मन्त्रित करके सूर्योदय समय सूर्य की तरफ पीठ करके पश्चिम दिशा तरफ मुख करके दूसरे के लिए दूसरे की छाया और अपने लिए अपनी छाया देखें।
(४)यदि सम्पूर्ण छाया दिखलाई दे तो चाल सम्पूर्ण वर्ष में मृत्य न हो। पग, जांधे, घुटने न दिखलाई दें तो क्रमशः तीन, दो, एक वर्ष के अन्त में मृत्यु हो। (५) उरु न दिखलाई दे तो दस मास, कमर दिखलाई न दे तो आठ अथवा नव मास, पेट दिखलाई न दे तो पांच मास के अन्त में मृत्य हो। (६) गर्दन न दिखलाई दे तो चार, तीन, दो अथवा एक मास में मृत्यु हो । कक्षा (बगल) न दिखलाई दे तो पन्द्रह दिन, भुजा न दिखलाई दे तो दस दिन में मत्य हो। (७) छाया में कन्धे न दिखलाई दें तो आठ दिन, हृदय न दिखलाई दे तो चार पहर (आधा दिन), सिर न दिखलाई दे तो दो पहर, यदि सर्वथा शरीर न दिखलाई दे तो तत्काल मृत्यु हो।
अन्य प्राचार्यों के मत से (ख) यदि दूत किसी वैद्य को रोगी के लिये बुलाने जावे अथवा किसी ज्योतिषी से रोगी सम्बन्धी प्रश्न पूछने जावे तब उसके मार्ग में खाली घड़ा अथवा तैली आदि अशुभ शकुन सामने पड़ जावें तो ऐसा रोगी प्रायः मर ही जाया करता है।
(ग) जिस रोगी के घर वाले तथा सम्बन्धी लोग भोजन करने बैठे और
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