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जिस साधना से पाप कर्म भस्म होता है वही तपस्या है।
सुखमना स्वर में नाक के श्वास को रोक कर प्राणायाम द्वारा भृकुटी में चढ़ाकर आत्म ध्यान कर निज अनुभव ज्ञान प्राप्त करें-२२० कुछ पहले वर्णन कर चुके हैं। तथा इसके अनुसार जब शरीर में भूल से भी रोग प्राप्त हो तो स्वरों को विवेक पूर्वक चलाने से रोग भी अवश्य दूर हो जाते हैं । अब इस विषय पर कुछ विशेष लिखते हैं ।
(१) ज्वर (बुखार)-जब शरीर में ज्वर की पूर्व तयारी रूप बेचैनी और अधिक गरमी मालूम पड़े, तब जो स्वर चालू हो उसे जब तक शरीर बराबर स्वस्थ न हो तब तक उस स्वर को बन्द रखना चाहिए । नासिका में नरम रुई भरकर रखने से स्वर बन्द किया जा सकता है।
(२) सिरदर्द हो तो सीधे चित्त लेट जाना चाहिए और दोनों भुजायें लम्बी फैला देनी चाहियें । तत्पश्चात् किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दोनों भुजाओं की कोहनियां ऊपर कस कर डोरी बांध देवें। ऐसा करने से तमाम दर्द पांचदस मिनिट में शांत हो जाएगा । जब दर्द ठीक हो जावे तो तुरन्त डोरियां खोल
(३) यदि आधा सीसी (आधे सिर का दर्द) हो तो इस परिस्थिति में जिस तरफ का माथा दुखता हो, मात्र उस तरफ के हाथ की कोहनी पर डोरी बांधनी चाहिए। दोनों कोहनियों पर डोरी बांधने की जरूरत नहीं है। (४) कदाचित दूसरे दिन फिर आधा सीसी का दर्द हो तो पहले दिन जो स्वर चलता था वही स्वर दूसरे दिन भी चलता है, ऐसा हो तब हाथ की कोहनी बांधने के साथ यह स्वर भी बन्द कर दें। (५) अजीर्ण (बदहज़मी)-जिसको सदा अजीर्ण की शिकायत रहती हो, उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब उसकी अपनी सूर्य नाड़ी चलती हो तभी भोजन करे। ऐसा करने से धीरे-धीरे अजीर्ण की व्याधि निर्मूल हो जाती है अर्थात् मिट जाती है । फिर पाचन शक्ति बढ़ने से खाया हुआ सब अन्न पच जाता है। भोजन करने के बाद १५-२० मिनिट बाईं करवंट लेटने से अधिक लाभ होगा।
(६) पुराणा अजीर्ण रोग मिटाने के लिए:-एक अन्य उपाय भी है। नित्य १०-१५ मिनिट पद्मासन से बैठना । दृष्टि को नाभी पर स्थिर रखना।
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